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ऋणानुबन्ध : स्वरूप, कारण और निवारण ५४३
रुपये मुझ से उधार लिये। संयोगवश पांच दिन तक ज्वरग्रस्त रहकर वह उसी ज्वर अवस्था में चल बसा। इस दलाल ने मेरे रुपये तो नहीं खाये, परन्तु सेठ के बहुत-से रुपये खा गया। अब उसी ऋण को वह हाथी बनकर चुका रहा है। यदि किसी तरह से राजा अपने हाथी का मुकाबला करा दे और शर्त रखी जाए पाँच हजार रुपये की, तो मैं अवश्य जीत जाऊँगा। सेठ को रुपये मिल जाएंगे और मैं ऋणमुक्त हो जाऊँगा। राजा और सेठ दोनों से मेरा लेन-देन चुकता हो जाएगा। यह बात है तो कठिन, परन्तु यह हो सके तो मैं भी ऋणमुक्त होकर इस बैल के शरीर से मुक्त हो जाऊँगा।
पं. जगन्नाथ बैलों की भाषा जानता था। उन दोनों बैलों की बातचीत सुनकर वह सोचने लगा-जब ठगी और कर्ज का ऐसा दुष्परिणाम है तो चोरी का नतीजा कितना भयंकर होगा? परन्तु परिवार का भूख से बिलखना और अभावग्रस्तता देखकर वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। सहसा एक विचार स्फुरित हुआ-"यह बात सेठ को बताई जाए तो ५ हजार का फायदा होने पर पांच सौ रुपये तो मुझे पुरस्कार के रूप में दे ही देगा।" उसने सेठ हीरालाल से बात चलाई। पहले तो पण्डित जगन्नाथ की बातें सुनकर सेठ बौखला उठा। उसे जरा भी विश्वास नहीं हुआ किन्तु जब दोनों बैलों के परस्पर वार्तालाप का वृत्तान्त सुनाया और काले बैल की पण्डितजी के कहने के अनुसार तीसरे दिन मृत्यु हो गई, तब सेठ को विश्वास हुआ। अब सेठ के सामने यह समस्या थी कि राजा को अपने हाथी के साथ धौलिये बैल को लड़ाने के लिए कैसे राजी किया जाए? एक दिन अकस्मात् ही राजा हाथी पर बैठ कर सामने से आ रहा था, धौलिया बैल सेठ के भवन के बाहर खड़ा था। हाथी को देखते ही धौलिया ने हुंकार भरी और खुरों से जमीन कुरेदने लगा। राजा ने बैल की चेष्टा देखी तो सेठ से बोला-"सेठ! तुम्हारा बैल तो ऐसी हुंकार भर रहा है, मानो मेरे हाथी से लड़ने को उद्यत हो!" सेठ बोला-'यदि आज्ञा हो तो लड़ भी सकता है।' राजा ने भी तैश में आकर कहा-इतना घमंड हो तो हो जाय दोनों की मुठभेड़। सेठ के अनुरोध पर राजा ने ५०००/- की शर्त भी मंजूर कर ली कि जिसका पशु जीते उसे ५०००/मिलें और हारे उसका पांच हजार गया। स्थान और समय भी निश्चित हो गया। राजमहल के विशाल प्रांगण में दोनों का आमना-सामना हुआ। हाथी बैल की ओर चिंघाड़ता हुआ उस पर झपटा। बैल ने अपने नुकीले सींग हाथी की कोमल सूंड में घुसेड़ दिये। अतः हाथी जोर से चिंघाड़ कर तुरंत मैदान छोड़कर भागा। जनता की
ओर से आवाज उठी-बैल जीत गया। जननिर्णय के आधार पर सेठ हीरालाल को पाँच हजार रु. मिल गए। बैल के भी करारी चोट लगी थी। पर विजय की खुशी में वह साहसपूर्वक खड़ा रहा। ज्यों ही पण्डित जगन्नाथ आया। दूसरी बात भी सच्ची होने के कारण सेठ ने ५००/- रु. उसके हाथ में इनाम के तौर पर थमा दिये। पण्डित
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