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________________ ऋणानुबन्ध : स्वरूप, कारण और निवारण ५४१ दहेज में राजकुमारी को अन्य सामान के साथ उसके पिता (राजा) ने वह ऊँट भी दिया, जो अब जवान हो चुका था। __राजकुमारी अपने पति के साथ उसी सुन्दर-सुसज्जित ऊंट पर बैठकर अपने पीहर से ससुराल को विदा हुई। अनेक बाराती, नौकर-चाकर आदि भी साथ में थे। कई मंजिल चलने के बाद एक दिन दोपहर को धूप में तेजी आ जाने से बारात ने गाँव के बाहर आम्रकुंज में पड़ाव डाला। वहीं एक कुंआ था, पानी की सुविधा थी। अतः कुछ बाराती भोजन बनाने में लगे, कुछ आराम और गपशप करने लगे। वरवधू को आम्रकुंज के नीचे बिठा दिया गया। वर का बैठे-बैठे मन नहीं लगा तो वह बारातियों में जा मिला। अकेली वधू आम्रकुंज की ओर टकटकी लगाकर देखने लगी। उसे वह आम्रकुंज, कुंआ और खेत अत्यन्त परिचित प्रतीत हुए। ऊहापोह करते-करते उसे अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो आई। जिसके कारण पिछले जन्म की समग्र घटनाएँ चलचित्र की भांति आँखों के समक्ष तैरने लगीं। - उसने दूर से आती हुई एक अधेड़ महिला को देखकर पहचान लिया कि यह मेरी पूर्वजन्म की देवरानी है और इसके पास में खड़ा हुआ लड़का उसका पुत्र गोर्धन है। फिर राजकुमारी ने उस महिला को संकेत से अपने पास बुलाया। उसके पास आने पर प्रेम से अपने पास बिठा कर उस महिला का, उसके पति का, उसके जेठजेठानी आदि का आद्योपान्त परिचय दिया। उस महिला ने जब सारा वृत्तान्त सुना तो आश्चर्य से आँखें फटी-सी रह गईं। उसने जब यह जाना कि यह राजकुमारी मेरी पूर्व-जन्म की जेठानी है, तब अन्याय एवं पक्षपात करने में प्रवीण अपने भूतपूर्व जेठजी के विषय में पूछा तो राजकुमारी ने पास ही बैठे हुए ऊँट की ओर इशारा करते हुए कहा-तुम्हारे जेठजी को अपने छोटे भाई के साथ कपट, झूठ, गेहूँ की चोरी और ईर्ष्या आदि के कारण अशुभ ऋणानुबंध के उदय के फलस्वरूप ऊँट की योनि मिली है। अब ये अपने छोटे भाई (जो अब राजकुमार है) का ऋण चुकाने के लिए जीवनभर उसका बोझा ढोते रहेंगे। उसकी सवारी के काम आते रहेंगे। मैं इन्हें मुक्त कराना चाहती हूँ, लेकिन कर्ज चुकाये बिना ये हर्गिज मुक्त नहीं होंगे। राजकुमारी ने फिर अपने पूर्वजन्म की देवरानी (उक्त महिला) को अपने गले को स्वर्णहार देते हुए कहा-"मेरे सिर पर भी चोरी से ये जो अन्न लाते थे, उसे खाने के कारण जो कर्ज चढ़ा है, उसके बदले यह हार रख लो।" दोनों महिलाओं की ये सारी बातें पास में बैठा ऊँट भी सुन-समझ रहा था। जातिस्मरणज्ञान हो जाने से उसे भी अपने पूर्वजन्मकृत पापों का ज्ञान हो गया। अतः उसने मन ही मन ठान लिया कि "मेरा छोटा भाई और मेरी पत्नी मुझ पर सवारी करें, इस अपमान को मैं नहीं सहूँगा। मुझ पर वे बैठेंगे तो मैं उलूंगा व चलूँगा भी नहीं।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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