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________________ ३६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ ध्रुवबन्धिनी कर्मप्रकृतियाँ : कितनी और क्यों ? कर्म की मूलप्रकृतियाँ और बन्धयोग्य उत्तरप्रकृतियाँ कर्म की मूलप्रकृतियाँ आठ हैं- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय। इन आठों की बन्धयोग्य उत्तरप्रकृतियाँ क्रमशः इस प्रकार हैं-(१) ज्ञानावरणीय की ५ प्रकृतियाँ-मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्याय और केवलज्ञानावरण। (२) दर्शनावरणीय की नौ-चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला और स्त्यानर्द्धि। (३) वेदनीय की दो-सातावेदनीय और असातावेदनीय, (४) मोहनीय की २६-मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी कषाय-चतुष्क, अप्रत्याख्यानावरण कषाय-चतुष्क, प्रत्याख्यानावरणी कषायचतुष्क, संज्वलन कषायचतुष्क, तथा हास्यादि नौ नोकषाय। (५) आयकर्म की ४-नरकायु, तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु और देवायु। (६) नामकर्म की ६७, (७) गोत्रकर्म की दो-उच्चगोत्र और नीचगोत्र और (८) अन्तराय कर्म की पाँचदानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय। यों बन्धयोग्य उत्तरप्रकृतियाँ क्रमशः ५+९+२+२६+४+६७+२+५=१२० होती हैं। सैंतालीस ध्रुवबन्धिनी प्रकृतियाँ वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, निर्माण, उपघात, भय, जुगुप्सा, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, और पाँच अन्तराय, यों कुल ४७ कर्मप्रकृतियाँ ध्रुवबन्धिनी हैं। आठ कर्मों के अनुसार इनका वर्गीकरण इस प्रकार है (1) ज्ञानावरणीय की पाँच-मति, श्रुत,. अवधि, मनःपर्याय और केवल ज्ञानावरणी। (२) दर्शनावरणीय की नौ-चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला और स्त्यानर्द्धि। (३) मोहनीय की उन्नीस-मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क, अप्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क, प्रत्याख्यानावरण कषाय-चतुष्क, संज्वलन-कषाय चतुष्क तथा भय और जुगुप्सा। (पृष्ठ ३५ का शेष) (ख) दव्वं खेत्तं कालो भवो य भावो य हेयवो पंच। हेउ समासेणुदओ जायइ सव्वाण पगईणं । . -पंचसंग्रह ३/३६ (ग) पंचम कर्मग्रन्थ गा. १ विवेचन (पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री) पृ. २, ३ (घ) वही, गा. १ विवेचन (मरुधरकेसरीजी) पृ. ६७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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