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________________ ारोहण के दो मार्ग : उपशमन और क्षपण ५२५ भव्य जीवों को प्रतिबोध, देशना तथा विहार, प्रचार आदि करते हैं। यदि उनके वेदनीयादि अघातिकर्मों की स्थिति आयु कर्म से अधिक होती है तो उनके समीकरण के लिये; यानी आयुकर्म की स्थिति के बराबर वेदनीयादि तीन अघाति कर्मों की स्थिति को करने के लिये समुद्घात करते हैं, जिसे जैनदर्शन में केवलि-समुद्घात कहते हैं। और उसके पश्चात् योग का निरोध करने के लिये उपक्रम करते हैं। यदि आयुकर्म के बराबर ही वेदनीय आदि कर्मों की स्थिति हो तो समुद्घात नहीं करते हैं। योग निरोध का क्रम योग के निरोध का क्रम इस प्रकार है- सबसे पहले बादर काययोग के द्वारा बादर मनोयोग को रोकते हैं। तत्पश्चात् बादर वचनयोग को रोकते हैं। उसके बाद सूक्ष्म काययोग के द्वारा बादर काययोग को रोकते हैं। फिर सूक्ष्म मनोयोग को, और सूक्ष्म वचनयोग को रोकते हैं। इस प्रकार बादर, सूक्ष्म मनोयोग, वचनयोग और बादर काययोग को रोकने के बाद सूक्ष्म काययोग को रोकने के लिए सूक्ष्म क्रियाऽप्रतिपाती ध्यान करते हैं। उस ध्यान में स्थितिघात आदि के द्वारा सयोगिअवस्था के अन्तिम समय पर्यन्त आयुकर्म के सिवाय शेष कर्मों का अपवर्तन करते हैं। ऐसा करने से सब कर्मों की स्थिति अयोगि-अवस्था के काल के बराबर हो जाती है। - यहाँ इतना विशेष समझना चाहिए कि अयोगि-अवस्था में जिन कर्मों का उदय नहीं होता, उनकी स्थिति एक समय कम होती है। . सयोगि से अयोगि केवली होने के लिए अवशिष्ट प्रकृतियों के क्षय का पुरुषार्थ ____सयोगि-केवली गुणस्थान के अन्तिम समय में साता या असाता वेदनीय में से कोई एक वेदनीय, औदारिक, तैजस, कार्मण, छह संस्थान, प्रथम संहनन, औदारिक अंगोपांग, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, पराघात, उच्छ्वास, शुभ-अशुभविहायोगति, प्रत्येक, स्थिर , अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर और निर्माण, इन ३० प्रकृतियों के उदय और उदीरणा का सदा-सदा के लिए विच्छेद हो जाता है और उसके अनन्तर समय में अयोगि-केवली हो जाते हैं।२ १. पंचम कर्मग्रन्थ, गा. ९९-१०० क्षपक श्रेणिद्वार-व्याख्या (मरुधरकेसरीजी), पृ. ३९४ २. (क) वही, क्षपक श्रेणी के सदर्भ में व्याख्या (मरुधरकेसरी), पृ. ३९४-३९५ (शेष पृष्ठ ५२६ पर) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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