SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९८ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ ये मुख्य भाव कितने-कितने किस-किस में प्राप्त होते हैं? क्षायिक और पारिणामिक ये दो भाव सिद्ध (मुक्त) आत्मा में होते हैं। यथा - ज्ञानादि क्षायिक भाव और जीवत्व पारिणामिक भाव । क्षायिक, औदयिक और पारिणामिक, ये तीनों भाव (त्रिक- संयोग ) ही भवस्थ केवली (जीवन्मुक्त) में होते -हैं । उनमें ज्ञानादि क्षायिक भाव हैं, मनुष्यगति और लेश्या औदयिक भाव है तथा पारिणामिक भाव जीवत्व है। क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक, ये तीन भाव (त्रिकसंयोग) केवल छद्मस्थ जीवों में, वह भी समस्त छद्मस्थ जीवों में होते हैं, क्योंकि सभी छंद्मस्थ जीवों में क्षायोपशमिक और औदयिक भाव होते ही हैं। सभी छद्मस्थ जीवों में भावेन्द्रिय अथवा मति - श्रुतज्ञान (सत् या असत्), ये क्षायोपशमिक भाव होते हैं । यही त्रिक- संयोग (तीनों भाव ) जिस प्रकार सभी गतियों के मिथ्यात्वी जीवों में होता है, उसी प्रकार क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी जीवों में भी होता है । क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी और क्षायोपशमिक चारित्री तिर्यंचों और मनुष्यों में भी यही त्रिक-संयोग (तीनों भाव) होता है। इन तीन भावों के अतिरिक्त अन्य भाव भी किन्हीं - किन्हीं छद्मस्थों में हो सकते हैं। जैसे कि-औपशमिक सम्यक्त्वी अथवा औपशमिक सम्यक्त्व और चारित्र, उभय के धारक में पूर्वोक्त त्रिक- संयोग के अलावा औपशमिक भाव भी होता है। जो छद्मस्थ उपशम श्रेणी से रहित क्षायिक सम्यक्त्वयुक्त हैं, अथवा जो क्षायिक सम्यक्त्व-क्षायिक चारित्र धारक हैं; उनमें प्रस्तुत त्रिसंयोग के अतिरिक्त क्षायिक भाव भी होता है । औपशमिक सम्यक्त्व तो चारों गतियों के प्राणियों में सम्भव है, जबकि औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र के धारक केवल मनुष्य ही हो सकते हैं। इस प्रकार के इन दोनों वर्गों में औपशमिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक, ये चार ही भाव हो सकते हैं। क्षायिक सम्यक्त्व भी चारों गतियों के प्राणियों में सम्भव है। अतः देव, नारक और तिर्यंच, इन तीन गतियों के क्षायिकसम्यक्त्व धारकों में तथा उपशम श्रेणी बिना के या ग्यारहवें गुणस्थान' सिवाय के क्षायिक सम्यक्त्वी छद्मस्थ मनुष्यों में तथा क्षायिक सम्यक्त्व चारित्र-धारक छद्मस्थ मानवों में क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक, ये चार ही भाव होते हैं। जो जीव क्षायिक सम्यक्त्वी होने के साथ ही उपशम श्रेणीवर्ती ( एकादशम गुणस्थानवर्ती) २ होता है, उसमें एक जीव में पूर्वोक्त पांचों भाव हो सकते हैं। इस १. नौवें दसवें गुणस्थान में औपशमिक चारित्र न मानने की अपेक्षा से। २. ग्यारहवें उपशान्तमोह गुणस्थान वाले को ही वस्तुतः औपशमिक चारित्र प्राप्त होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy