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________________ औपशमिकादि पांच भावों से मोक्ष की ओर प्रस्थान ४९९ तरह सान्निपातिक भाव के १५ भेद चार गति के जीवों में पाये जाते हैं। शेष २० भेद असम्भव यानी शून्य समझने चाहिए। गुणस्थानों के साथ भावों की योजना गोम्पटसार में गुणस्थानों की योजना पंचभावों के साथ इस प्रकार की गई हैगुणस्थान भाव १. मिथ्यादृष्टि औदयिक २. सास्वादन पारिणामिक ३. सम्यग्-मिथ्यादृष्टि क्षायोपशमिक ४. अविरत-सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक ५. विरताविरत क्षायोपशमिक ६. प्रमत्त-संयत क्षायोपशमिक ७. अप्रमत्त-संयत क्षायोपशमिक ८.. निवृत्तिबादर . उपशमश्रेणी हो तो औपशमिक क्षपक श्रेणी हो तो क्षायिक . ९. अनिवृत्ति बादर. उपशम श्रेणी हो तो औपशमिक, क्षपक श्रेणी हो तो क्षायिक १०. सूक्ष्म सम्पराय उपशम श्रेणी हो तो औपशमिक, क्षपक श्रेणी हो तो क्षायिक ११. उपशान्तमोह औपशमिक १२.. क्षीणमोह क्षायिक १३. सयोगी केवली क्षायिक १४. अयोगी केवली क्षायिक .. (क) चउ-चउगईसु मीसग-परिणाममुदएहिं चउसखइएहिं । उपसम-जुएहिं वा चउ, केवलि-परिणाममुदयखइए॥७॥ खय-परिणामे सिद्धा, नराण पणजोगमुवसमसेढीए। इय पन्नर-संनिवाइय-भेया, वीसं असंभाविणो॥६८॥ -कर्मग्रन्थ भा. ४, गा.६७-६८ विवेचन (ख) जैनदर्शन (न्यायविजयजी), पृ. ३१४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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