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________________ ४४० कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ । पर्यन्त चार गुणस्थानों में अनन्तानुबन्धी कषाय-चतुष्क तथा नरकायु-तिर्यञ्चायु इन ६ प्रकृतियों के सिवाय १४२ प्रकृतियों की सत्ता होती है। नौवें गुणस्थान के दूसरे से नौवें भाग तक में सत्ता की प्ररूपणा. नौवें गुणस्थान के नौ भाग होते हैं। इन नौभागों में से प्रथम भाग में क्षपकश्रेणी की अपेक्षा से १३८ प्रकृतियों की सत्ता होने की प्ररूपणा पहले की जा चुकी है। दूसरे भाग में १२२ प्रकृतियों की सत्ता रहती है। प्रथम भाग में जो १३८ प्रकृतियों की सत्ता कही गई है, उसमें से स्थावरद्विक (स्थावरनाम, सूक्ष्मनाम), तिर्यञ्चद्विक (तिर्यंचगति और तिर्यंचानुपूर्वी), नरकद्विक (नरकगति और नरकानुपूर्वी), आतपद्विक, (आतप और उद्योत नामकर्म), स्त्यानर्द्धित्रिक (निद्रा-निद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानर्द्धि) एकेन्द्रिय जाति नामकर्म, विकलेन्द्रिय त्रिक (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय नामकर्म और साधारण नामकर्म, इन १६ प्रकृतियों का क्षय नौवें गुणस्थान के प्रथम भाग के अन्तिम समय में हो जाने से इन १६ प्रकृतियों के कम हो जाने से दूसरे भाग में १२२ प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं। तीसरे भाग में ११४ कर्मप्रकृतियों की सत्ता रहती है; क्योंकि दूसरे भाग की १२२ सत्तायोग्य प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण कषाय-चतुष्क तथा प्रत्याख्यानावरण-कषाय-चतुष्क, इन ८ कर्मप्रकृतियों की सत्ता का क्षय दूसरे भाग के अन्तिम समय में हो जाने से तीसरे भाग में ११४ कर्मप्रकृतियों की सत्ता रहती है। चौथे भाग में ११३ कर्मप्रकृतियों की सत्ता रहती है, क्योंकि तीसरे भाग के अन्तिम समय में पूर्वोक्त ११४ में से नपुंसकवेद की सत्ता का क्षय हो जाने से ११३ प्रकृतियों की सत्ता रहती है। इसी प्रकार चौथे भाग के अन्तिम समय में स्त्रीवेद का अभाव हो जाने से चौथे भाग की सत्तायोग्य ११३ प्रकृतियों में से एक प्रकृति कम हो जाने से ११२ प्रकृतियों की सत्ता पांचवें गुणस्थान में रहती है। पांचवें भाग के अन्तिम समय में हास्य-षट्क का क्षय हो जाने से छठे भाग में पंचम भागोक्त ११२ में से ६ प्रकृतियाँ कम हो जाने से १०६ प्रकृतियाँ सत्ता में रहती है। छठे भाग में सत्ता योग्य १०६ प्रकृतियों का कथन किया गया था, उनमें से छठे भाग के अन्तिम समय में पुरुषवेद की सत्ता का अभाव हो जाने से सातवें भाग में १०५ प्रकृतियों की सत्ता रहती है। सातवें भाग के अन्तिम समय में संज्वलन क्रोध का क्षय होने से आठवें भाग में १०४ और आठवें भाग के अन्तिम समय में संज्वलन मान का क्षय हो जाने से नौवें भग में १०३ और नौवें भाग के १. (क) द्वितीय कर्मग्रन्थ गा. २७ विवेचन, पृ. १०७ से १११ तक (ख) खवगं तु पप्प चउसु वि, पणयालं नरय-तिरि-सुराउ विणा। सत्तग विणु अडतीसं, जा अनियट्टी पढमभागो॥ २७॥ -द्वितीय कर्मग्रन्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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