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________________ गाढ़ बन्धन से पूर्ण मुक्ति तक के चौदह सोपान Jain Education International १४ बन्ध से मुक्ति तक पहुँचने के लिए पर्वतारोहणवत् गुणस्थानारोहण आवश्यक पर्वत के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने के लिए मनुष्य को कितने साहस, विवेक, प्रशिक्षण और योग्यता - सक्षमता की आवश्यकता है, इसे प्रत्येक समझदार व्यक्ति जानता- मानता है। यदि कोई व्यक्ति पर्वत की तलहटी में ही बैठा रहे, ऊपर चढ़ने का जरा भी साहस और पुरुषार्थ न करे, बल्कि यह कहे कि " पर्वत के शिखर पर आरोहण करना तो दूर रहा, एक-दो सोपान चढ़ना भी असम्भव है," वह व्यक्ति पर्वत के सर्वोच्च शिखर पर कैसे पहुँच सकता है ? किन्तु हिमालय की सबसे ऊँची एवरेस्ट चोटी, जो २९००२ फीट ऊँची है, उस पर भी शेरपा तेनसिंग ने सन् १९५३ में चढ़कर यह सिद्ध कर दिया कि पर्वत के सर्वोच्च शिखर पर भी पहुँचा जा सकता है। सन् १९६० में एक भारतीय पर्वतारोही दल ने भी एवरेस्ट शिखर पर आरोहण किया था। सन् १९६१ में मैक्स एसलिन स्विस पर्वतारोहियों का दल २६७६५ फीट ऊँचाई पर स्थित धवलगिरि शिखर पर चढ़ने में सफल हुआ। एक जापानी पर्वतारोही दल भी २३४४० फीट ऊँचाई पर स्थित गौरीशंकर शिखर पर चढ़ने के प्रयास में सफल हुआ। इन सब पर्वतारोहियों की सफलता को देखकर यही कहा जा सकता है कि कठिन से कठिन और ऊँची से ऊँची पर्वत की चोटी पर साहस, उत्साह, श्रद्धा और विवेक के बल पर सफलतापूर्वक आरोहण किया जा सकता है। सामान्य श्रद्धालु मनुष्य तो उनकी साहसिकता और श्रद्धा-शक्ति की तथा आत्मबल की प्रशंसा ही कर सकते हैं, परन्तु जो साहसहीन, उत्साह - श्रद्धा - हीन तथा मनोबलविहीन हैं, वे स्वयं चढ़ना तो दूर रहा, दूसरे चढ़ने वालों को भी हतोत्साहित, निराश एवं अश्रद्धालु कर देते हैं। . For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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