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________________ मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-१ २२१ प्रश्न होता है-सम्यक्त्व-परिणाम सहेतुक है या अहेतुक ? सहेतुक मानने पर प्रतिप्रश्न होता है कि उसके नियत हेतु-निमित्त कारण क्या हैं? उसके नियत हेतु के दो प्रकार हैं बाह्य हेतु और अन्तरंग हेतु। इनमें सम्यक्त्व-परिणाम का नियत हेतु (आन्तरिक कारण) जीव का भव्यत्व नामक अनादि पारिणामिक स्वभाव-विशेष है। जब इस अनादि पारिणामिक भाव-भव्यत्व का परिपाक होता है, तभी सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाती है तथा उस समय प्रवचन-श्रवण आदि बाह्य हेतु भी उसके निमित्त कारण बन जाते हैं; जो भव्यत्व भाव के परिपाक में सहायक हो जाते हैं। सम्यक्त्व प्राप्ति का आन्तरिक कारण भव्यत्व-भाव होने पर भी अभिव्यक्ति के आभ्यन्तर कारणों की विविधता से सम्यक्त्व के औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक आदि भेद बनते हैं। जैसे-अनन्तानुबन्धी-चतुष्क और दर्शनमोह-त्रिक, इन सात प्रकृतियों का क्षयोपशम क्षायोपशमिक सम्यक्त्व का; उपशम औपशमिक सम्यक्त्व का; क्षय क्षायिक सम्यक्त्व का; तथा सम्यक्त्व से गिरा कर मिथ्यात्व की ओर झुकाने वाला अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय सास्वादन सम्यक्त्व का; मिश्र मोहनीय का उदय मिश्र सम्यक्त्व का और सम्यक्त्व के प्रतिपक्षी मिथ्यात्व का उदय मिथ्यात्व का कारण है। अभिव्यक्ति के कारणों की उक्त विविधता के कारण सम्यक्त्व मार्गणा के पूर्वोक्त छह भेद होते हैं, जिनके लक्षण क्रमशः यों हैं (१) औपशमिक सम्यक्त्व-अनन्तानुबन्धी कषाय-चतुष्टय और दर्शनमोहत्रिक-इन सात प्रकृतियों के उपशम से प्राप्त होने वाले तत्त्व रुचि रूप आत्मपरिणाम को औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। इसके दो भेद हैं- (१) ग्रन्थि-भेदजन्य और (२) उपशमश्रेणिभावी। ग्रन्थिभेदजन्य औपशमिक सम्यक्त्व अनादि-मिथ्यात्वी भव्य जीवों को होता है और उपशमश्रेणि-भावी औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति चौथे, पाँचवें, छठे और सातवें, इन चार गुणस्थानों में से किसी भी गुणस्थान में हो सकती है; किन्तु आठवें गुणस्थान में तो अवश्य ही उसकी प्राप्ति होती है। - (२) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व-अनन्तानुबन्धी कषाय-चतुष्क और मिथ्यात्व मोहनीय तथा सम्यग्-मिथ्यात्व-मोहनीय; इन छह प्रकृतियों के उदय-भावी क्षय और इन्हीं के सदवस्था रूप उपशम से तथा देशघाती-स्पर्द्धक वाली सम्यक्त्व-प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थ-श्रद्धानरूप आत्मपरिणाम होता है, वह क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है। इसे वेदक-सम्यक्त्व भी कहते हैं। क्षायोपशमिक और औपशमिक सम्यक्त्व के कार्यों में अन्तर ___ औपशमिक के उपशम शब्द का अर्थ क्षयोपशम शब्द के उपशम से भिन्न है। क्षयोपशम में क्षय और उपशम दो शब्द हैं। क्षय का अर्थ है-आत्मा से कर्म का १. चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा. १३ विवेचन (मरुधर केसरीजी), पृ. १३४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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