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________________ मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-१ २०१ भिन्नताओं से घिरे हुए जीवों का सर्वेक्षण विविध मार्गणाओं के माध्यम से किया जाता है । जबकि गुणस्थान जीव पर आये हुए कर्मपटलों के तरतमभावों और योगों की प्रवृत्ति-निवृत्ति का बोध कराते हैं। मार्गणाएँ जीवों के विकासक्रम को नहीं बतातीं, अपितु उनके स्वाभाविक-वैभाविक रूपों का अनेक प्रकार से विश्लेषणपृथक्करण करती हैं। मार्गणास्थानों के चौदह भेद जिनके माध्यम से मार्गणा (सर्वेक्षण) की जाती हैं, उन मार्गणास्थानों के १४ भेद हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं- (१) गति-मार्गणा, (२) इन्द्रिय-मार्गणा, (३) काय-मार्गणा, (४) योगमार्गणा, (५) वेदमार्गणा, (६) कषाय-मार्गणा, (७) ज्ञानमार्गणा, (८) संयम-मार्गणा, (९) दर्शन-मार्गणा, (१०) लेश्या-मार्गणा, (११) भव्यत्व-मार्गणा, (१२) सम्यक्त्व-मार्गणा, (१३) संज्ञित्व-मार्गणा और (१४) आहारकत्व-मार्गणा। ___ मार्गणा के ये १४ भेद संसारी जीवों की अपेक्षा से किये जाते हैं। मार्गणा के इन चौदह भेदों में संसारी जीवों की समस्त पर्यायों और उनमें विद्यमान भावों का समावेश हो जाता है। चौदह मार्गणाओं के लक्षण _ (१)गति-गति-नामकर्म के उदय से होने वाली जीव की पर्याय तथा जिससे जीव मनुष्य, तिर्यञ्च, देव अथवा नारक व्यवहार का अधिकारी कहलाता है। या चार गतियों-नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव में गमन करने की गति कहते हैं। (२) इन्द्रिय-त्वचा, नेत्र, जीभ आदि जिन साधनों से आत्मा को सर्दी. गर्मी. काले-पीले तथा खट्टा-मीठा आदि विषयों का ज्ञान होता है, वे इन्द्रिय कहलाती हैं, अथवा जो गूढ-सूक्ष्म आत्मा के अस्तित्व का ज्ञान कराने के कारण हैं, उन्हें इन्द्रिय कहते हैं। (३) काय-जिसकी रचना और वृद्धि यथायोग्य औदारिक, वैक्रिय आदि पुद्गल-स्कधों से होती है तथा जो शरीरनामकर्म के उदय से निष्पन्न होता है; अथवा १. तृतीय कर्मग्रन्थ, गा. १ विवेचन (मरुधरकेसरी), पृ. ३ २. (क) गइ-इंदिए य काए, जोए, वेए, कसाय-नाणेसु। संजम-दसण-लेस्सा भवसम्मे सन्नि-आहारे॥-चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा. ९ .. (ख) गइ-इंदिएसु काये जोगे वेदे कसाय-णाणे य। संजम-दंसण-लेस्सा भविया सम्मत-सण्णि-आहारे॥ . गोम्मटसार (जीवकाण्ड) १४१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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