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जीवस्थानों में गुणस्थान आदि की प्ररूपणा १७५ चौदह जीवस्थानों में से किस-किस जीव के कौन-कौन-से गुणस्थान हो सकते हैं? क्योंकि चौदह गुणस्थानों में से कोई न कोई गुणस्थान प्रत्येक संसारी जीव में पाया ही जाता है।
पांच जीवस्थानों में मिथ्यात्व तथा सास्वादन गुणस्थान : क्यों? कैसे? जीवस्थान के १४ भेदों में से बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, विकलेन्द्रिय-त्रिक (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) अपर्याप्त, इन पांच जीवस्थानों में मिथ्यात्व और सास्वादन, ये दो गुणस्थान पाये जाते हैं।
इन पांच जीवस्थानों में से बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों के जो दो गुणस्थान कहे गए हैं, वे तेजस्कायिक और वायुकायिक को छोड़कर शेष पृथ्वीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के ही समझने चाहिए, क्योंकि तेजस्कायिक
और वायुकायिक जीव, चाहे बादर हों, या सूक्ष्म उनमें ऐसे परिणाम सम्भव ही नहीं हैं, कि सास्वादन-सम्यक्त्वयुक्त जीव पैदा हो सकें।
इसके अतिरिक्त बादर एकेन्द्रिय आदि पांच अपर्याप्त जीवों में जो दो गुणस्थान माने गए हैं, यहाँ अपर्याप्त का अर्थ लब्धि-अपर्याप्त नहीं, करण-अपर्याप्त समझना चाहिए, क्योंकि सास्वादनसम्यक्त्व वाला जीव लब्धि अपर्याप्त रूप में पैदा ही नहीं होता। निष्कर्ष यह है कि सूक्ष्म और बादर तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों के सिवाय शेष तीन प्रकार के बादर एकेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और विकलेन्द्रियत्रिक, इन पांचों जीवस्थानों में करण-अपर्याप्त होने पर पहला और दूसरा दो गुणस्थान तथा लब्धि-अपर्याप्त होने पर केवल प्रथम गुणस्थान ही समझना चाहिए। संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त में पहला, दूसरा और चौथा गुणस्थान :
क्यों और कैसे? · संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त में मिथ्यात्व, सास्वादन और चौथा अविरत सम्यग्दृष्टि, ये तीन गुणस्थान होते हैं, क्योंकि अपर्याप्त अवस्था में मिश्र गुणस्थान नहीं होता और मिश्र गुणस्थान में मरण नहीं होता, तथा जब कोई जीव चतुर्थ गुणस्थानसहित मरकर संज्ञिपंचेन्द्रिय रूप से पैदा होता है, तब उसे अपर्याप्त अवस्था में चतुर्थ गुणास्थान सम्भव है। इस प्रकार जो जीव सम्यक्त्व का त्याग करता हुआ सास्वादन भाव में प्रवर्तमान होकर संज्ञि-पंचेन्द्रिय रूप से उत्पन्न होता है, उसमें शरीर पर्याप्ति पूर्ण न होने तक द्वितीय गुणस्थान की सम्भावना है तथा अन्य सभी संज्ञि-पंचेन्द्रिय जीवों को अपर्याप्त अवस्था में प्रथम गुणस्थान ही होता है। अपर्याप्त संज्ञिपंचेन्द्रिय में तीन गुणस्थानों की शक्यता बताई, यहाँ अपर्याप्त से करण-अपर्याप्त समझना चाहिए
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