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कर्मबन्ध की विविध परिवर्तनीय अवस्थाएँ-२ १३३ जाति के बीजों में रूपान्तरित कर देते हैं, जिसे वे संकर-प्रक्रिया कहते हैं। संकर गेहूँ, संकर मक्का आदि इसी संक्रमण प्रक्रिया के रूप हैं। इसी प्रकार पूर्व में बँधी हुई कर्म प्रकृतियाँ वर्तमान में बंधने वाली सजातीय कर्म प्रकृतियों के रूप में संक्रमित या परिवर्तित हो जाती हैं। जिस प्रकार चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में विकृत हृदय के स्थान पर स्वस्थ हृदय का, विकृत नेत्र के स्थान पर स्वस्थ लेंस का प्रत्यारोपण कर दिया जाता है, और उससे व्यक्ति रोग के कष्ट से बच जाता है तथा स्वस्थ अंग की शक्ति की प्राप्ति से लाभान्वित हो जाता है। इसी प्रकार संक्रमण प्रक्रिया से पूर्व बद्ध अपनी अशुभ कर्म प्रकृति को अपनी सजातीय शुभकर्म-प्रकृति में परिवर्तित करके उसके दुःखद फल से बचा जा सकता है, और आत्मशक्ति और मनःशुद्धि में वृद्धि
होने से आत्मगुण विकास भी किया जा सकता है। . - कर्म विज्ञानवत् मनोविज्ञान भी सजातीय प्रकृतियों में संक्रमण मानता है _ जिस प्रकार कर्मविज्ञान में संक्रमण केवल सजातीय प्रकृतियों में सम्भव है, उसी प्रकार मनोविज्ञान में भी रूपान्तरण केवल सजातीय प्रकृतियों मनोवृत्तियों में ही सम्भव माना गया है। दोनों ही विजातीय प्रकृतियों के साथ संक्रमण या रूपान्तरण नहीं मानते हैं।
'उदात्तीकरण की प्रक्रिया और संक्रमण प्रक्रिया . कर्म सिद्धान्तानुसार पाप प्रकृतियों से छुटकारा पाने के लिए पुण्य प्रवृत्तियाँ * अपनाई जा सकती हैं, इसी सिद्धान्त का अनुसरण मनोविज्ञानवेत्ता भी कर रहे हैं।
आधुनिक मनोविज्ञान शास्त्र में उदात्तीकरण की प्रक्रिया पर विशेष जोर दिया जा रहा है। वर्तमान में उदात्तीकरण की प्रक्रिया का प्रयोग उद्दण्ड, शरारती, अनुशासनहीन, तथा तोड़-फोड़ करने व दंगा करने वाले अपराधी मनोवृत्ति के छात्रों एवं व्यक्तियों पर किया जा रहा है। अपनी रुचि के अनुरूप किसी रचनात्मक कार्य में लगाया जाता है। कई जेलों में अपराधियों को सुधारने और सामाजिक बनाने के लिए तथा उनकी अपराधी मनोवृत्ति का समाजोपयोगी कार्यों में मोड़ने का प्रयोग किया जा रहा है। कई युवकों की कुत्सित वासना की प्रवृत्ति को मोड़ कर चित्रकला, काव्यकला, समाज सेवा, बाल-सेवा, प्रभु भक्ति आदि में लगाई जा रही है।
, रूपान्तरण भी संक्रमणवत् दो प्रकार का कर्मविज्ञान में प्ररूपित इस संक्रमणकरण को वर्तमान मनेविज्ञान की भाषा में मार्गान्तरीकरण या रूपान्तरण कहा जा सकता है। यह मार्गान्तरीकरण दो प्रकार का
१. कर्म सिद्धान्त (कन्हैयालाल लोढ़ा), पृ. २२ से २४ तक
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