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________________ कर्मबन्ध की विविध परिवर्तनीय अवस्थाएँ APA १ Jain Education International सूर्य - प्रकाश की प्रतिबद्ध अवस्थाओं की तरह आत्मप्रकाश प्रतिबद्ध अवस्थाएँ सूर्य का प्रखर प्रकाश तभी अभिव्यक्त होता है, जब वह बादलों से आच्छादित न हो; अथवा रात्रि का अन्धकार उसे न घेर रहा हो। सूर्य जब सघन बादलों से घिर रहा हो, तब भी वह अपने प्रखर प्रकाश से उस आवरण या प्रतिबद्धता को मन्द कर देता है। कभी-कभी तो वह स्वयं उस घने अन्धकार से इतना ढक जाता है, कि उक्त प्रतिबद्धता के वश होकर काफी देर तक आच्छादित रहता है, प्रकाशित नहीं हो पाता। इस प्रकार सूर्य जब अन्धकार के साथ बंध जाता है, तब कई प्रकार की अवस्थाएँ प्रादुर्भूत होती हैं; कभी कम, कभी ज्यादा । कभी प्रकाश अधिक तो कभी अन्धकार अधिक। ठीक इसी प्रकार आत्मारूपी सूर्य के ज्ञानादि प्रकाश के सम्बन्ध में समझिए । राग-द्वेष-मोह के कारण कर्मबन्ध का अन्धकार कभी तो इतना गाढ़रूप से छा जाता है कि उसे अपने प्रकाश का बिलकुल भान नहीं रहता । कभी उसमें आत्मजागृति के कारण कर्मबन्ध का अन्धकार घट जाता है, प्रकाश बढ़ता है, कभी प्रकाश घट जाता है, अन्धकार बढ़ जाता है। सूर्य के प्रकाश की अवस्था की तरह कर्मबन्ध की अवस्थाओं में न्यूनाधिकता, परिवर्तन, एक कर्मबन्ध का सजातीय दूसरे कर्म में संक्रमण, स्थिति और रस (अनुभाग ) की न्यूनाधिकता आदि विविध अवस्थाएँ होती रहती हैं। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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