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विपाक पर आधारित चार कर्मप्रकृतियाँ ८१ होता तो किसी भी जीव का एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय में भी मनुष्य योनि में आना सम्भव नहीं था। आत्मार्थी मुमुक्षुजनों द्वारा अहिंसादि की साधना करने का प्रयोजन ही क्या रहा? हमारे अंदर बहुत बड़ी क्षमता है, उन विपाकों में परिवर्तन ला सकने की। इसी उद्देश्य से कर्मविज्ञान-मर्मज्ञों ने विपाकाधारित कर्मप्रकृतियों का लेखाजोखा दिया है, ताकि व्यक्ति कर्मों की प्रकृतियों को ठीक-ठीक समझ ले और उनमें कैसे परिवर्तन लाया जा सकता है या उन्हें आने ही न दिया जाए, इस सूत्र को जान ले।
१. चेतना का ऊर्ध्वारोहण से भावांश-ग्रहण, पृ. २००, २०१
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