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________________ (३९) . “एको दरिद्र एकोहि श्रीमानिति च कर्मणः । मनुष्य की जीवन यात्रा की शुचिता यह है कि वह कर्म से अकर्म की स्थिति में पहुंचे, तत्त्वदर्शी, लोक व्यवहार से परे । आचारांग (१.३.१) यही कहता है "अकम्मस्स ववहारो न विज्जई" अथवा एक कवि के अनुसार मैंने वे बंधन तोड़ दिए, जिनसे जीवन संकीर्ण बना । वे परिभाषाएं भूल गया, जिनसे मेरा स्वर जीर्ण बना ॥ जब इस सीमा पर पहुंचा तब सीमा का संसार न था। (रामकुमार वर्मा) कवि प्रसाद ने भी कहा है-कर्म का भोग-भोग का कर्म-यही जीवन की अप्रतिहत प्रक्रिया ___आज विज्ञान पूर्व जन्म के संस्कारों पर बल देता है, उसी प्रकार शताब्दियों पूर्व जैनागमों और आचार्यों ने संस्कार व स्मृति की व्याख्या पर कर्म प्रकृति और बंध पर विचार किया था। जैन दर्शन के अनुसार संस्कारों के अधीन मनुष्य के सब कर्म हैं, जिन्हें वह पूर्वभव और कुछ वर्तमान भव से संचित करता है। जैनशास्त्रों ने गर्भाधान से लेकर ५३ क्रियाओं का विधान किया है। संस्कार की परिभाषा है, "वस्तु स्वभावोऽयं यत् संस्कारः स्मृति बीज मादधति अर्थात् वस्तु का स्वभाव ही संस्कार है, यही स्मृति का बीज है। शास्त्रकारों की यह धारणा रही है कि शुद्ध ज्ञान-श्रुत ज्ञान के संस्कार शनैः शनैः आत्म संस्कार बनते हैं। आत्म संस्कार से तात्पर्य है "निजपरमात्मनि शुद्ध संस्कार करोति स आत्म संस्कारः अर्थात् शुद्ध संस्कार निज परमआत्म का संस्कार है। यह भी कहा गया है कि अविद्या के द्वारा उत्पन्न संस्कारों से मन विक्षिप्त हो जाता है पर “तदैव ज्ञान संस्कारेः स्वतस्ततत्वेऽवितिष्ठते"-कषायों के द्वारा उत्पन्न संस्कारों के नष्ट न होने पर, जीव निरन्तर कर्म बन्ध का कुफल भोगता रहता है। स्थूल शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर है, वह इन्द्रियाँ, प्राण, मन, बुद्धि एवं अहंकार से बनता है। चौदह तत्वों से निर्मित यह सूक्ष्म शरीर मरणोपरान्त आत्मा के साथ जाता है और पुनर्जन्म के साथ लौटता है। आत्मा की कर्म मुक्ति तक यह साथ रहता है और नए जन्म का प्रकार निर्धारित करता है। अतीत कर्मों के स्मृति प्रभाव और चिन्हों को वासना एवं संस्कार कहते हैं। यहां संस्कार से तात्पर्य है चिन्ह, प्रभाव, किया तथा रूप । संस्कार दो प्रकार के होते हैं। स्मृति क्लेश रूपी जिन्हें ज्ञानज संस्कार कहा है। कर्म विपाक के संस्कारों को "वासना" कहते हैं, "द्वये खल्वमी संस्कारौः स्मृति क्लेश हेतुवो वासना रूपाः विपाक हेतवो धर्माधर्म रूपाः (व्यास भाष्य ३.१८) वासनाएं, अवचेतन अचेतन में पड़े हुए प्राचीन संस्कार होने से मनुष्य की मानसिक शक्तियाँ, स्वभाव व रुचियों के भेद के लिए उत्तरदायी हैं। पुनर्जन्म में चित्त इन वासनाओं से जकड़ा हुआ होता है (भारतीय मनोविज्ञान डॉ. लक्ष्मी शुक्ला के आधार पर) स्मृति का बीज संस्कार है। पूर्व संस्कार के कारण प्रकट स्मरण को "स्मृति" कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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