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________________ ३५२ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) तो मेरे पास ले आना, मैं तेरी गाय बिकवा दूंगा।' एक दिन दूसरे प्रान्त का एक ग्राहक गाय खरीदने के लिए आया। उसे गाय पसंद आ गई। उसने गाय का मूल्य दे दिया, फिर पूछा कि यह कितना दूध देती है ? ग्वाले ने कहा-मैं अपने मुँह से क्या कहूँ ? चलो, भगतजी के पास, वे आपको सब बता देंगे। दोनों भगतजी के पास आए। भगतजी मौन धारण करके बैठे थे। आगन्तुक ने पूछा-भगतजी ! यह गाय कितना दूध देती है ? भगतजी ने उँगली से सामने पड़े हुए लगभग पाँच सेर के पत्थर की ओर इशारा किया। आगन्तुक समझा कि लगभग ५ सेर दूध देती है। शाम को दुहने लगा तो गाय ने लात मार दी। दूध बिलकुल नहीं दिया। दूसरे दिन भी यही हुआ। सोचा-मेरे साथ धोखा किया गया है। वह गाय को लेकर भगतजी के पास आया और उन्हें उलाहना देने लगा कि आपने कैसे समर्थन किया कि यह पत्थर के जितना दूध देती है। भगतजी बोले-मैंने कहाँ कहा था, यह पाँच सेर दूध देती है ? तेरे दिमाग में सोचने की शक्ति नहीं है, उसका मैं क्या करूँ, मैंने पत्थर की ओर इसलिए इशारा किया था कि यह पत्थर दूध दे तो यह गाय दूध दे। इस प्रकार ग्वाले और भगतजी ने कायचेष्टा से धोखा देकर अशुभ नामकर्म का बन्ध किया। ___ कई लोग इस प्रकार का वाक्य बोलते हैं कि सामने वाला धोखे में आ जाता है। एक ८० वर्ष का बूढ़ा था। उसे इस उम्र में विवाह करने की ललक उठी। एक दलाल को ठीक किया। दलाल ने कहा-किसी लड़की वाले के यहाँ जाकर तुम्हारी सगाई पक्की करा दूंगा। उसकी दलाली के ५०० रुपये लूँगा। बूढ़े ने स्वीकार किया। वह एक गरीब लड़की वाले के यहाँ पहुँचा। उससे बात की। कहा-तुम्हारी लड़की सेठानी बन कर मौज करेगी, गहनों से लदी रहेगी। लड़की के पिता ने कहा-लड़के की उम्र कितनी है ? उसने प्रसन्नतापूर्वक कहा-“उगणीसाबीसी, बीसाइक्कीसी ऐसी ऐंसी केवे हैं।" लड़की का बाप समझ-१९, २० या २१ वर्ष का होगा। अतः कहा-तो ठीक है, उसके साथ सगाई पक्की रही। विवाह तिथि निश्चित हो गई। बूढ़ा दूल्हा बनकर घोड़े पर चढ़ कर आया तो सब देखते ही रह गए कि दलाल. तो कहता था-"१९, २० या २१ वर्ष का वर है। यह तो ८० वर्ष का बूढ़ा दिखता है।" लड़की के पिता ने झट दलाल को फटकारा तो उसने कहा-मैंने कब कहा था-उन्नीस-बीस वर्ष का है, मैंने जो कहा था-उसकी जोड़ लगा.लीजिए १९ + २० + २० + २१ कितने होते हैं, ये सब मिल कर अस्सी ही तो होते हैं। मैंने झूठ कहा हो तो बोलिये ! इस प्रकार दलाल ने वचन की चातुरी से दूसरों को धोखा देकर अशुभ नामकर्म का बन्ध कर लिया। इस प्रकार जो लोग काया से, वचन से और मन से दूसरों को धोखा देने की चेष्टा करते हैं, वे जानबूझकर अशुभनामकर्म का बन्धन कर लेते हैं।२ और (४) १. (क) ज्ञान का अमृत से, पृ. ३३७-३३८ (ख) अस्तेयदर्शन (उपाध्याय अमरमुनि) से २. श्रावक का अस्तेयव्रत (जैनाचार्य पूज्यश्री जवाहरलालजी म.) से भावांशग्रहण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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