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________________ २५0 कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) अवग्रह आदि पदों का अर्थ और विश्लेषण अवग्रह आदि पदों का अर्थ इस प्रकार है-नाम, जाति आदि की विशेष कल्पना से रहित जो सामान्य मात्र का ज्ञान हो, वह अवग्रह है। जैसे-गाढ़ अंधकार में पैर से. कुछ छू जाने. पर, 'यह कुछ है' सर्वप्रथम ऐसा अव्यक्त बोध होना, अवग्रह है। इस बोध में वस्तु क्या है? यह स्पष्ट या व्यक्त मालूम नहीं देता। अवग्रह द्वारा ग्रहण किये हए विषय को विशेष रूप से निश्चित करने हेतु जो सम्भावनात्मक विचार चलता है, वह ईहा है। जैसे-पैर से किसी वस्तु का स्पर्श हो जाने पर विचार करना कि 'यह रस्सी का स्पर्श है या सर्प का?' रस्सी का स्पर्श होना चाहिए; क्योंकि सर्प का स्पर्श होता तो स्पर्श होते ही डंक मारता या फुफकारता। इस तरह सम्भावना या संशयात्मक विचारणा ईहा है। ईहा के द्वारा ग्रहण किये हुए विशेष का कुछ अधिक अवधानएकाग्रतापूर्वक निश्चय होता है, वह अवाय कहलाता है। ईहा और अवाय का समय अन्तर्मुहूर्त है। जैसे-पैर में किसी वस्तु का स्पर्श होने पर ईहा द्वारा की गई सम्भावना कुछ समय तक चलती है, फिर ऐसा संस्कार छोड़ जाती है कि योग्य निमित्त मिलते ही कुछ क्षणों बाद ही ऐसा निश्चय हो जाता है कि यह रस्सी का ही स्पर्श है। सर्प का नहीं, ऐसा निश्चय अवाय है। अवाय द्वारा कृत निश्चय की यह सतत धारा, तज्जन्य संस्कार, और संस्कारजन्य निश्चित वस्तु का योग्य निमित्त मिलने पर स्मरण होना, उस स्मरण का कायम रहना यह सब मतिव्यापार धारणा है। ये चारों क्रमभावी मतिज्ञान हैं। पाश्चात्य तर्कशास्त्र के अनुरूप मतिज्ञान का भी क्रम संगत है अवग्रहादि द्वारा मतिज्ञान की उत्पत्ति का क्रम निर्देश किया गया है। यह तो निश्चित है कि मतिज्ञान इन्द्रिय और अनिन्द्रिय के निमित्त से होता है। 'अंधेरे में पुस्तक पड़ी है' इसका सामान्य बोध होने के पश्चात् उसका विशेष बोध करने (जानने) की तत्परता होती है। सर्वप्रथम तो 'यह वस्तु है' ऐसा ही ख्याल आता है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र (Logic) में ज्ञान प्राप्ति के लिए तीन परिस्थितियाँ बताई गई हैं(Conception-कान्सेप्सन) (Perception-परसेप्सन) (Knowledgeनालेज) । सर्वप्रथम Conception में सिर्फ सामान्य बोध होता है, इसी अत्यन्त सामान्य बोध को जैनदर्शन में 'दर्शन' और 'अवग्रह की दशा में रखा जा सकता है। उसके पश्चात् Perception होता है, उसमें ईहा और अवाय का समावेश होता है, तत्पश्चात् Knowledge में धारणा का समावेश होता है। इन शब्दों को हम ध्यान में -तत्त्वार्यसूत्र १/१५ वही, १/१४ १. (क) अवग्रहेहावाय धारणाः । (ख) तदिन्द्रियानिन्द्रिय-निमित्तम्। (ग) ज्ञान का अमृत से, पृ. १५५ (घ) अणुगाह-ईहावाय-धारणा करण-माणसेहिं छहा । . इय अट्ठवीसभेय........॥ -कर्मग्रन्थ भा. १, गा. ५ (विवेचन) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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