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________________ ९५४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) में कहें तो प्राणायाम की प्रक्रिया से ब्रह्माण्डव्यापी प्राणतत्त्व का हवा के साथ आकर्षण कैसे हो जाता है ? प्राणयोग विशारद इसका समाधान यों करते हैं कि हवा में ऑक्सीजन जैसे रासायनिक पदार्थ ही नहीं, उसके गहन अन्तराल में प्राणतत्त्व की प्रचुर मात्रा भी विद्यमान रहती है। वह श्वास के साथ अनायास ही शरीर में प्रवेश करता रहता है। शरीर उसमें से कामचलाऊ मात्रा में सोखता भी है। प्राणायाम प्रक्रिया में श्वास-प्रश्वास के घर्षण से ऊर्जा (बल-शक्ति) की उत्पत्ति और हवा के साथ घुले-मिले ऑक्सीजन जैसे रासायनिक पदार्थों की ही नहीं, प्राणशक्ति (प्राणबल) की उपलब्धि का भी लाभ मिलता है। जीवन का आधार श्वास पर अवलम्बित है, ऐसा जो कहा जाता है, उसके पीछे रहस्य है - श्वास-प्रश्वास का घर्षण, एवं प्राण के अनुदान से अभीष्ट ऊर्जा की उपलब्धि । घर्षण के महत्त्व को भली-भाँति समझना आवश्यक है। यह क्रिया सामान्य है, पर उसकी प्रतिक्रिया असामान्य हैं, जिससे ऊर्जा की उत्पत्ति होती है। रेल की पटरियों पर उसके पहियों की बार-बार रगड़ से चिनगारी और गर्मी उत्पन्न होती है, जो पहिये के धुरे तक को भी गला देती है। दही मथने में रस्सी के दो छोर पकड़ कर रई को उलटा-सीधा घुमाया जाता है। रई घूमती है, ऊर्जा उत्पन्न होती है और उसी की उत्तेजना से दही में घुला "हुआ घी मक्खन के रूप में उभर कर बाहर आ जाति है। इसी प्रकार दायें-बायें नासिका स्वरों के चलने वाले विशेष प्रकार मेरुदण्ड के इडा पिंगला विद्युत् प्रवाहों को उत्तेजित करते हैं और उनकी सक्रियता - M हलचल पैदा करती है। फलतः ओजस् तत्त्व उभर कर ऊपर आ जाता है। इसे पूर्वोक्त विधिवत् उत्पन्न और धारण किया जा सके तो श्वासोच्छ्वास- बल-प्राण- संवर का साधक तेजस्वी, ओजस्वी, तपस्वी और मनस्वी बनकर इस प्राण- संवर की साधना प्रखररूप से कर सकता है। इस उपलब्धि के सहारे प्रखरता की अनेक चिनगारियाँ फूटती हैं। स्फूर्ति, हिम्मत, पराक्रम, शौर्य, निष्ठा, धृति, उत्साह आदि अनेकों आन्तरिक विशेषताएँ उसे उपलब्ध हो जाती हैं। उनसे लाभान्वित होने पर उसके व्यक्तित्व में अनेक ऋद्धि-सिद्धियां, लब्धियाँ और विभूतियाँ उसे हस्तगत हो जाती हैं। पौरुष, पराक्रम और शौर्य इसी आन्तरिक प्राणबल (आन्तरिक ऊर्जा) के सहारे प्राप्त होता है। श्वास-प्रश्वास के साथ प्राणऊर्जा, आत्मबल आदि की उपलब्धि इस प्रकार श्वास- उच्छ्वास के साथ प्राणऊर्जा की उपलब्धि भौतिक और • आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में लाभदायक है। आध्यात्मिक प्राणायाम से आन्तरिक प्राणऊर्जा अर्जित करके आत्मिक शक्ति प्राप्त की जा सकती है, जो आत्म-परिष्कार, आत्मविकास, कर्म-संवर, एवं आत्मिक प्रगति के लिए आवश्यक है। आत्मबल बढ़ाने के लिए वैचारिक Jain Education International For Personal & Private Use Only ' www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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