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________________ प्राणबल और श्वासोच्छ्वास-बलप्राण-संवर की साधना ९५३ वैज्ञानिकों का कथन है कि प्रत्येक श्वास के साथ हम आकाश से केवल हवा ही नहीं खींचते, बल्कि उसके साथ विद्युत् एवं विद्युत के उत्पादक कण, तथा चुम्बकीय तत्त्व भी आकर्षित (आहूत) करते हैं। यह विशेष विद्युत् विभिन्न प्रकार की और विभिन्न गुणों की उत्पादिका होती है, यह सामान्य बिजली की तरह जड़ तत्त्वों के अन्तर्गत नहीं आती; क्योंकि उसमें जीवन के सभी तत्त्व भरे रहते हैं। ऐसा जीवन तत्त्व, जो जीवाणुओं की तरह हलचल ही नहीं करता, बल्कि उसमें चेतना, क्रियाशीलता, उत्साह, एवं विचारकता भी भरी होती है। यह दिव्य और भव्य विचारकता, आध्यात्मिकतत्त्व की चिन्तनशीलता ही शुद्धआत्मिक या परमात्सीय प्रवाह है, जिसे ग्रहण करने की क्षमता प्राणायाम (प्राणबलसंवर) की साधना से होती है। विशेषतः निद्रावस्था में हमारा अवचेतन मस्तिष्क आकाश से इतनी विद्युतीय खुराक प्राप्त कर लेता है, जिससे शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक क्रियाकलापों का संचालन ठीक ढंग से हो सकता है। अनिद्रारोग में या विक्षिप्त (पागलपन) या अर्धविक्षिप्त अवस्था में इस विधुतीय आहार की कमी पड़ती है। प्राणी के शरीर रूपी यंत्र को संचालित रखने के लिए जिस विद्युत की आवश्यकता पड़ती है, उसे प्राण कहते हैं। प्राण एक प्रकार की अग्नि है, जिसे ज्वलन्त रखने के लिए (छही दिशाओं के पुद्गलों के) आहार (आहरण) की आवश्यकता पड़ती है। ये आहार्य पुद्गल श्वास के माध्यम से शरीर में प्रविष्ट होते हैं। - विज्ञान यह मानता है कि पृथ्वी के इर्दगिर्द एक चुम्बकीय वातावरण दूर दूर तक फैला हुआ है। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण ही सब कुछ नहीं है, उसके साथ चुम्बकीय वातावरण मिलकर अपने लोक में संव्याप्त कितनी ही क्षमताओं को जन्म देता है। उनके आधार पर संसार के समस्त प्राणी कर्मक्षयोपशमवशात् अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार अपनी-अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु श्वासोच्छ्वास के माध्यम से आकर्षित कर लेते हैं। वे उनकी गतिविधियाँ तथा उनकी शारीरिक मानसिक क्षमताएँ भी बढ़ा सकते हैं; बशर्ते कि वे प्राणशक्ति का अभिवर्धन श्वासोच्छ्वास के साथ करें। इस चुम्बकत्व का उद्गमस्रोत भी पृथ्वी के गहन अन्तराल से निकलने वाला शक्तिप्रवाह (प्राणबलोत्पादक प्रवाह) है।' श्वास के साथ शरीर में प्राणतत्त्व का प्रवेश :श्वास-प्रश्वास के घर्षण से ___ प्रश्न होता है, भगवतीसूत्र में उल्लिखित, उच्छास-निःश्वास के माध्यम से चार, पांच या छह दिशाओं से प्राणयोग्य पुद्गल कैसे आकर्षित आहृत हो जाते हैं ? स्पष्ट शब्दों .. १. “अखण्डज्योति मार्च १९७७ से साभार उद्धृत पृ. ३६ . . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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