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________________ प्राण-संवर का स्वरूप और उसकी साधर ९१? श्रवणेन्द्रिय क्षमता में वृद्धि कैसे-कैसे सम्भव? . . यदि पूर्वजन्म कृत शुंभकर्म के स्वरूप श्रवणेन्द्रिय के साथ पर्याप्त प्राणशक्ति, (इन्द्रियपर्याप्ति) मिल जाए और मनुष्य अभ्यास करे तो वह श्रवण क्षमता में आश्चर्यजनक प्रगति कर सकता है। स्थूल (द्रव्य) कर्णेन्द्रिय का भी विकास इतना हो सकता है कि वह सिकंदर की तरह दूरगामी शब्दों को भी भलीभांति सुन ले। कानाफूसी की या घुसपुस की आवाज को भी कर्णेन्द्रिय के साथ प्राणऊर्जा की प्रखरता मिल जाने से सुना जा सकता है। भीड़ की चहल-पहल के सम्मिश्रित शब्दोच्चारण में से अपने परिचितों की आवाज को कर्णेन्द्रियबल-प्राणवान व्यक्ति छांट और पकड़ सकता है। ... यह तो हुई द्रव्य (स्थूल) श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा निकटवर्ती एवं परिचित उच्चारणों को सुनने-समझने की क्षमता की बात। इससे भी आगे बढ़कर तैजस शरीर और कार्मणशरीरों में सन्निहित प्राणऊर्जा और कर्मजाशक्ति को विकसित किया जाए तो अन्तरिक्ष में निरन्तर प्रवाहित होने वाली ध्वनियों को, तथा दूरस्थ व्यक्ति के मन की बात को, पशु-पक्षियों और समस्त प्राणियों की मनःस्थिति को बिना देखे-सुने भाव-श्रोत्रेन्द्रिय से सुना-समझा जा सकता है। जो चर्मनिर्मित स्थूल द्रव्य-श्रोत्रेन्द्रिय की पकड़ से बाहर है। स्थूल (द्रव्य) श्रोत्रेन्द्रिय का विकास भी बाह्य श्रवण संवर से साध्य - कराहने की आवाज सुनकर किसी के शोक या वेदना से ग्रस्त होने, दर्द से छटपटाने, सताये जाने आदि की स्थिति का-दूरी का, तथा नर या नारी का, वृद्ध या बालक के उच्चारण का अनुमान तो स्थूल द्रव्य श्रोत्रेन्द्रिय से भी हो जाता है। किन्तु सूक्ष्म-जगत् की हलचलों का श्रवण तथा स्थूल कर्णेन्द्रिय की पकड़ से बाहर की सूक्ष्म ध्वनियों का श्रवण तैजस-कार्मण शरीर से उपलब्ध प्राणशक्ति से समन्वित भाव-श्रोत्रेन्द्रिय से किया जा सकता है। विश्व में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न स्तर की घटित होने वाली घटनाओं का विवरण भी अव्यक्त रूप से सुना, जाना जा सकता है। तथा इहलोक-परलोक में कहीं भी हो रही हलचलों को प्राणशक्ति युक्त भाव-कर्णेन्द्रिय के एकाग्र एवं संवृत होने पर सुना-जाना जा सकता है। जो जानकारियाँ सर्व-साधारण द्वारा जानी-सुनी नहीं जा सकतीं, वे प्राणऊर्जा सम्पन्न भाव-कर्णेन्द्रिय के विकास द्वारा जानी-सुनी जा सकती हैं। किसी की श्रवणेन्द्रिय की प्राणशक्ति पूर्वजन्मकृता कर्म-क्षयोपशमवश इतनी विकसित हो जाती है कि वह केवल एक बार सुनकर उसे मरितष्क में वर्षों तक स्थायी रख सकता है। जापान निवासी हनावा होकाइशी (सन् १७२२.१८२३) सात वर्ष की १. अखण्ड ज्योति मार्च १९७२ से भावांश ग्रहण पृ. ३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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