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________________ ९१२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कमों का आनव और संवर (६) - कान सरीखा कोई इलेक्ट्रानिक उपकरण मनुष्य द्वारा बन सकना कठिन है। सुनने के प्रयोजन में काम आने वाले मानव-निर्मित यंत्रों की तुलना में कर्णेन्द्रिय की संवेदनशीलता दस हजार गुनी है। यदि कर्णेन्द्रिय की क्षमता बढ़ाई जाए तो वह ४ लाख प्रकार की आवाज पहचान सकती है और उनके विविध प्रकार का परिचय भी पा सकती है। शतावधानी और सहनावधानी लोग सौ एवं हजार शब्द श्रृंखला को क्रमबद्ध से सुनते हैं और उन्हें मस्तिष्क (मावेन्द्रिय) में धारण कर सकते हैं; साथ ही वे उम सुने हुए शब्दों और वाक्यों को क्रमशः या विपरीत क्रम से वापस सुना सकने में समर्थ होते हैं। कहते हैं, पृथ्वीराज चौहान की श्रवणक्षमता इतनी विकसित थी कि उसने घण्टे पर पड़ी.चोट को सुनकर उसकी दूरी की सही स्थिति ज्ञात कर ली थी। कर्णेन्द्रिय की रचना से कानों की प्राणऊर्जा ग्रहणशक्ति - कर्णेन्द्रिय की रचना ऐसी है कि उसकी बहुत ही बारीक और संवेदनशील झिल्ली की मोटाई एक इंच की २५00 ब्रिलियन (एक ब्रिलियन दस लाख के बराबर होता है) जितनी है। इस झिल्ली के तीन अंग हैं। तीसरे भाग की झिल्ली का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क (भाव-श्रोत्रेन्द्रिय) से है। कान के बाहरी पर्दे पर टकराने वाली आवाज को लगभग ३५०० कणिकाओं द्वारा आगे धकेला जाता है और मस्तिष्क तक पहुँचने में उसे सेकण्ड के हजारवें भाग से भी कम समय लगता है। मस्तिष्क की प्राणऊर्जा-उसे शीघ्र ग्रहण और धारण कर लेती है। और फिर उसे स्मरणशक्ति के कोष्ठकों में पहुँचा देती है। प्राणशक्ति के द्वारा काफी पहले सुनी हुई आवाज को स्मरण करके मनुष्य निर्णय कर सकता है कि यह आवाज अमुक व्यक्ति की है, या अमुक वाध की है।' इस प्रकार प्रोग्रेन्द्रिय के साथ प्राणशक्ति जुड़ जाने से श्रवण क्षमता बढ़ जाती है। सिकन्दर की श्रवणशक्ति विलक्षण थी। एक बार रात को उसने एक गायन सुना। निस्तब्ध नीरवता में उस गीत की ध्वनि बहुत दूर से आ रही थी। परन्तु सिकन्दर ने उस गीत को केवल सुना ही नहीं, याद भी कर लिया। कई दिनों तक वह संगीतः ध्वनि उसी समय पर उसी तरह कई दिनों तक सुनाई देती रही। सिकन्दर ने अपने कर्मचारियों को उस संगीत के गायक की दूरी और उसके स्थान की दिशा भी बतला दी कि वह गायक ५ मील दूर, नीरव जंगल में, अमुक दिशा में है, तथा उसे बुलाने के लिए कर्मचारियों को भेजा तो ठीक उतनी दूरी पर उसी दिशा में वह गायक उन्हें मिला। .-:. ... नेपोलियन बोनापार्ट की प्राणऊर्जायुक्त श्रवणशक्ति इतनी तीव्र थी कि उसे अपनी सेना के प्रायः हर सैनिक को नाम याद रहता था, और आवाज सुनकर ही बिना देखे वह बता देता था कि कौन बोल रहा है? १. अखण्ड ज्योति, मार्च १९७२ से साभार सारांश उद्धृत पृ. ३५ ..... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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