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________________ मनःसंवर की साधना के विविध पहलू ८९३ कर्मों का प्रतिफल हूँ; यह विचार मनुष्य की चिन्तन-मनन, वाणी और क्रिया की अशुभ (गलत) प्रवृत्तियों (अशुभकर्मों का आनव और बन्ध की कारणभूत मनःप्रवृत्तियों) को दूर करने या न्यून करने के लिए है। जो इन पाँच बातों पर विचार करता है, वह अपने (मनोजनित) अहंकार और वासना को (राग-द्वेष-मोह) को दूर कर सकता है, कम से कम भी कर सकता है। इस प्रकार निर्वाण के मार्ग पर (परम संवर के पथ पर) चलने में समर्थ हो सकता है।" तथागत बुद्ध का यह पंचसूत्री उपदेश मन से होने वाले शुभाशुभ कर्मानवों को दूर कर तथा मनःशुद्धि करने में और पूर्वोक्त साधनाओं के अभ्यास के साथ मन को वैराग्यवासित रखने में अतीव सहायक है। मनःसंवर सिद्ध हो जाने पर वाक्संवर, कायसंवर और इन्द्रियसंवर तो अनायास ही स्वतः हो सकेंगे। Sermons and Sayings of the Budha, Ch ४९-५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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