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________________ प्राण-संवर का स्वरूप और उसकी साधना कल-कारखाने के संचालन की तरह शरीर-संचालन के लिए भी ऊर्जाशक्ति , अनिवार्य किसी कल-कारखाने में मशीनें ठीक हों, उनके कल-पुर्जे भी उचित स्थान पर फिट किये गए हों, मशीन की उत्पादन क्षमता भी ठीक हो; किन्तु उसे भाप, तेल, बिजली या कोयला पर्याप्त मात्रा में न मिले तो उस कल-कारखाने की मशीन चल नहीं सकती। क्योंकि मशीन को चलने के लिए ऊर्जा शक्ति या तैजस शक्ति चाहिए, जिसे मशीन के कल-पुर्जे, मशीन की उत्पादन क्षमता, मशीन चलाने वाले व्यक्ति, अथवा मशीन में जंगन लगे, इस दृष्टि से दिया जाने वाला तेल आदि सहायक साधन नहीं दे सकते। मानव शरीर भी एक कारखाना है, जिसमें मन, इन्द्रियों और अंगोपांगों के पुर्जे लगे हुए हैं, द्रव्य-मस्तिष्क एवं द्रव्य-हृदय आदि भी अपने-अपने स्थान पर फिट हैं, किन्तु यह मानव शरीर रूपी कारखाना ठीक ढंग से तभी चल सकता है, बोल सकता है, सोच सकता है, प्रसन्न रह सकता है और निश्चय कर सकता है तथा सहानुभूति और सहृदयता अपना सकता है, जब इसके साथ ही जैविक विद्युत् के रूप में प्राणशक्ति हो, जिसे हम ओजस शक्ति, तैजस शक्ति या ऊर्जा शक्ति कह सकते हैं। ___ अन्न, जल तथा खाद्य पदार्थों से मानव शरीर रूपी बृहत् यंत्र की भट्टी गर्मभर होती है, उन्हें पचाने, रसायनों में परिवर्तित करने और उनमें सोचने, बोलने, चलने, निर्णय करने, प्रसन्न रहने, उदार बनने आदि की कार्यक्षमता एवं सक्रियता पैदा करने में तो प्राणशक्ति या तैजस शक्ति की आवश्यकता होती है। __पेट में आहार डाल देने मात्र से ही शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, ऐन्द्रियक तथा आवयविक शक्ति प्राप्त नहीं हो जाती। पाचक रासायनिक द्रव्य केवल आहार से नहीं अपितु अपने परम्परागत शक्ति स्रोतों से उत्पन्न होते हैं। आहार तो उन शक्तिस्रोतों को धकेलने वाली गर्मीभर उत्पन्न करते हैं। उनमें कार्यक्षमता पैदा होती है, तैजस (विद्युत) युक्त प्राणशक्ति से। १. अखण्ड ज्योति मार्च १९७६ से, भावांश ग्रहण पृ. १३-१६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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