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________________ ८८० कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) मनःसंवर के साधक को एक बात का अवश्य ध्यान रखना है कि विरोधी प्रवृत्तियाँ, मनोवृत्तियाँ भले ही उन पर हावी हो जाएँ, वे अन्तर् (भीतर) से उन्हें कदापि नहीं स्वीकारें । प्रवृत्तियों-वृत्तियों का उठना कोई पाप नहीं है। गलत प्रवृत्ति को भीतर से स्वीकारना ही पाप को जन्म देना है, पापानव को न्यौता देना है। ' . नाम-जप से मन की शुद्धता और निरुद्धता नामजप, धाराप्रवाह प्रभुनाम स्मरण का माहात्म्य बताते हुए ब्रह्मानन्द स्वामी कहते हैं- "परमात्मा के नाम के जप का चक्र समस्त क्रियाओं के साथ सतत चलता रहे तो ...... हृदय की सारी जलन, तपन शान्त हो जाएगी। तुम नहीं जानते कि परमात्मा के नामस्मरण की शरण लेकर कितने पापी-तापी शुद्ध और मुक्त हो गए हैं।... जब कभी अवांछनीय विचार तुम्हारे मन को घेरने लगें, तुम उन्हें परमात्मा की ओर मोड़ दो, हृदय से (नामस्मरण करते हुए) प्रार्थना करो। इस प्रकार के अभ्यास के फलस्वरूप मन नियंत्रण में आता है और पवित्र बनता है। श्री रामकृष्ण परमहंस का उपदेश इस विषय में मननीय एवं अभ्यसनीय है-. “उनका (प्रभु का) नाम-गुण-गान करने से (जैन दृष्टि से शक्रस्तव के या लोगस्स के पाठ से वीतराग परमात्मा की स्तव स्तुति करने से दृष्टिविशुद्धि तथा ज्ञान-दर्शन- चारित्र - बोधिलाभरूपी संवर प्राप्त होता है) तन-मन-बुद्धि से समस्त पाप पलायित हो जाते हैं। इस देहरूपी वृक्ष में पापरूपी पक्षी हैं, परमात्मा का नाम कीर्तन रूपी ताली बजाना है। ताली बजाने से वृक्षारूढ़ सभी पक्षी भाग जाते हैं, उसी प्रकार उनके नाम कीर्तन (स्तवन - स्तुतिमंगल) से सभी पाप भाग जाते हैं। इसी प्रकार श्रीमां शारदामणि देवी से कई लोगों ने पत्र द्वारा मन को वश में करने का सरल और सशक्त उपाय पूछा तो उन्होंने विश्वासपूर्ण वाणी में कहा - "यदि कोई रोज पन्द्रह से बीस हजार (प्रभु नाम का जाप करता है तो मन स्थिर हो जाता है। यह बिलकुल सत्य है। मैंने स्वयं इसका अनुभव किया है। पहले ये लोग इसका अभ्यास तो करें और यदि असफल हो जाएँ तो भले ही शिकायत करें। पर ये तो करेंगे नहीं, वे करेंगे कुछ नहीं और केवल शिकायत करते रहेंगे कि मैं सफल क्यों नहीं हो रहा हूँ ?"" १. २. ३. ४. मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से भावांश ग्रहण, पृ. ९५ The Eternal Companion: Spiritual Teachings of Swami Brahmananda. (ले. स्वामी प्रभवानन्द, श्री रामकृष्ण मठ मद्रास, १९४५) पृ. १६६ 'म' कृत श्रीरामकृष्ण वचनामृत भाग १ (पंचम संस्करण) पृ. १९६ Sri Sharada Devi : The Holy Mother (स्वामी तपस्यानन्द एवं स्वामी निखिलानन्द ) (श्रीरामकृष्ण मठ, मद्रास), पृ. ४८९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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