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________________ ७८0 कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) इन्द्रियों को खुराफात की जड़ क्यों मानी गई? हम देखते हैं कि अधिकांश भारतीय धर्मों और दर्शनों ने इन्द्रियों को ही सारी खुराफात की जड़ माना है। उन्हें चोर, अपहर्जी, छली तथा आत्मा के लिए हानिकारक, रागद्वेष या काम, कोध आदि विकारों की उत्तेजक व प्रेरक मानकर गालियाँ दी हैं। इन्द्रियों के प्रति अत्यन्त आक्रोश और रोष भी प्रकट किया है, मानो इन्द्रियों से बढ़कर आत्मा का कोई शत्रु नहीं। कतिपय हठवादियों का इन्द्रियों के प्रति गलत दृष्टिकोण ____ कुछ हठवादियों ने तो इससे भी आगे बढ़कर प्रतिपादन किया कि अगर आँख बरा देखती है तो आँख को फोड़ दो, कान बुरा सुनते हैं तो उनके पर्दे फाड़कर बहरे बना दो, जीभ बुरा बोलती या अनिष्टकारक चखती है तो उसे भी काट डालो या मुँह को सीं दो, ताकि उसमें से खाद्य-पेय का प्रवेश न हो सके या वह बोल ही न सके। इस प्रकार इन्द्रियों को आत्मा के शत्रु मानकर इन्हें विकृत एवं खण्डित करने का प्रयास भी कई लोगों ने किया है। स्पर्शेन्द्रिय के अन्तर्गत हाथ, पैर भी आ जाते हैं। विश्वामित्र के उद्यान से फल तोड़ने के अपराध में लिखित ने अन्य प्रायश्चित्त न लेकर शंख राजा से जिन हाथों द्वारा चोरी हुई है, उन हाथों को काट डालने का दण्ड स्वीकार किया। इसी प्रकार बिल्वमंगल को आँखों से किसी सुन्दरी को देखकर काम वासना उत्पन्न हुई इस कारण उन आँखों में ही अग्नि में तप्त गर्म सलाइयाँ उसने घुसेड़ कर आँखें फोड़ दीं। महात्मागाँधी के सेवाग्राम आश्रम में भणसाली भाई रहते थे। उन्होंने गलत न बोला जाए और खाद्य पदार्थों का रसास्वादन होने से आसक्ति न हो जाए, इसके लिए बोलने और खाने के प्रवेशद्वार होठों को ही तार से सीं लिया।' इन्द्रियों को तोड़ने-फोड़ने आदि से इन्द्रिय-संवर नहीं . · प्रश्न होता है, क्या इस प्रकार इन्द्रियों को तोड़ने-फोड़ने, विकृत करने और उनसे काम लेना बंद कर देने मात्र से इन्द्रिय-संवर हो जाता है, या इन्द्रिय-निरोध का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है? क्या इन्द्रिय-संवर का यह सही तरीका है? क्या कोई भी प्राणी इस उपाय से इन्द्रियविजयी, दान्त (दमितेन्द्रिय) या जितेन्द्रिय हो जाता है ? । यह इन्द्रिय-संवर या इन्द्रिय की साधना का सही मार्ग नहीं है। यदि यह मार्ग यथार्थ होता तो जो व्यक्ति गूंगा, बहरा, अन्धा, लूला-लंगड़ा, अंग-विकृत या किसी इन्द्रिय से हीन है, उसे अनायास ही जितेन्द्रियता या इन्द्रियसंवर की सिद्धि प्राप्त हो जाती तथा जो व्यक्ति जन्म से ही अन्धा, बहरा या गूंगा जन्मा, वह इन्द्रियसंवर या इन्द्रियविजय १. (क) महावीर की साधना का रहस्य से यत्किंचिद् भावांश ग्रहण पृ. ७८-७९ । (ख) अखण्ड ज्योति अप्रैल १९७६ से यत्किंचिद् भावांश ग्रहण, पृ. ५१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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