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________________ इन्द्रिय-संवर का राजमार्ग ७७७ सारा घटनाक्रम धृतराष्ट्र को सुनाया था। इस सम्भावना की टेलीविजन ने पुष्टि कर दी और अब रही-सही कसर 'होलोग्राफी' ने पूरी कर दी है। इससे यह भी स्पष्ट है कि मनुष्य अगर चाहे तो अपनी नेत्रेन्द्रियों को त्राटक साधना तथा दूरवीक्षण साधना आदि यौगिक साधनाओं से अतीत, अनागत तथा वर्तमान की तथा दूरस्थ एवं व्यवहित घटनाओं को इन आँखों से तो नहीं, परन्तु भाव-नेत्रेन्द्रियों-ज्ञानचक्षुओं-दिव्य दृष्टियों से प्रत्यक्षवत् देख सकता है। घ्राणेन्द्रिय का महत्त्व भी मनुष्य के लिए कम नहीं है। घ्राणेन्द्रिय को विकसित करके मनुष्य न केवल शारीरिक और मानसिक शक्ति ही विकसित कर सकते हैं, वरन् आत्मबल भी प्रचुर मात्रा में बढ़ा सकते हैं। योग साधना में नासिका के द्वारा स्वरविज्ञान . की साधना बताई गई है, जिसके द्वारा महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। भविष्य की घटनाओं का ज्ञान स्वरविद्या की सहायता से हो सकता है। मनुष्य की अपेक्षा कुत्ते, बिल्ली, चूहे, दीमक, चीटियाँ, मधुमक्खियाँ आदि जानवरों की घ्राणशक्ति अत्यधिक विकसित है। वे सूंघ-सूंघ कर अनेक वर्तमान, भूत और भावी घटनाओं का पता लगा लेते हैं। मनुष्य भी चाहे तो योग साधना के द्वारा घ्राणशक्ति की क्षमता को बढ़ा सकता है। किन्तु मनुष्य ने इसकी उपेक्षा करके घ्राणेन्द्रिय को दुर्बल बना दिया है। नेतिकर्म, स्वरविधा, प्राणायाम, सोऽहं साधना, नासिकाग्र पर ध्यान आदि का विधिवत् अभ्यास करके घ्राणेन्द्रिय को सुविकसित किया जा सकता है और उससे अनेक आध्यात्मिक उपलब्धियाँ भी प्राप्त की जा सकती हैं। अतः घ्राणशक्ति और गन्धविज्ञान पर नये सिरे से शोध करने की आवश्यकता है; ताकि इस महत्वपूर्ण आधार के जरिये मानव अपनी दिव्य शक्तियों और बोध-क्षमता का अधिकाधिक विकास कर सके। ___“रसनेन्द्रिय की क्षमता में भी अभूतपूर्व वृद्धि की जा सकती है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध वेत्ता धन्वन्तरि आदि आचार्यों ने जिह्वा से चख-चखकर अनेक औषधियों का आविष्कार लोकहित के लिए किया। उन्होंने प्रत्येक जड़ी-बूटियों को परखा और उसके गुण-धर्मों का विवरण प्रस्तुत किया। जिह्वेन्द्रिय के वशीकरण एवं खेचरीमुद्रा आदि के द्वारा विविध आध्यात्मिक शक्तियाँ उपलब्ध की जा सकती हैं। ___ स्पर्शेन्द्रिय की क्षमता में वृद्धि करके मानव अनेक दुखित पीड़ित रोगियों को स्पर्शमात्र से निरोग कर सकता है। किसी भी व्यक्ति की किसी वस्तु या अंग को छूकर उसके भूत, भविष्य की घटना का ज्ञान कर सकता है। स्पर्शेन्द्रिय की क्षमता बढ़ा कर . योग-साधक शक्तिपात करके दूसरे व्यक्ति को अध्यात्म शक्ति सम्पन्न बना सकता है।' १. अखण्ड ज्योति मार्च १९७२, पृ. ३५, मई १९७४/९ पृष्ठ तथा अक्टूबर १९७३/३५ पृष्ठ । से यत्किंचिद् भावांश ग्रहण। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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