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________________ ७७६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) इन्द्रियाँ विषयों के प्रवेश के लिए द्वार हैं, झरोखे हैं, खिड़कियाँ हैं इन्द्रियाँ एक प्रकार से दरवाजे हैं, जिनमें से होकर आत्मा की चैतन्य- रश्मियाँ, भावोर्मियाँ, आत्मा की ज्ञान, दर्शन, सुख और शक्ति की किरणें बाहर आती हैं, और बाह्य जगत् तथा जगत् के सजीव-निर्जीव पदार्थों के साथ सम्पर्क स्थापित करती हैं। इन्द्रियों के ये द्वार खुले हों तो मनोज्ञ या शुभ विषय भी प्रवेश कर सकता है और अमनोज्ञ या अशुभ विषय भी । इन्द्रियों का मुख्य कार्य है - उन्हें अवकाश देना, रास्ता दे देना। इन्द्रियों के द्वार से कोई भी आ जाए। (पंचेन्द्रिय) विषयवासना की उर्मियाँ आएँ या चैतन्य की रश्मियाँ, इन्द्रियों के द्वार सबके लिए खुले रहते हैं।" वस्तुतः इन्द्रियाँ एक प्रकार से खिड़कियाँ या झरोखे हैं, आत्मा के लिए बाह्य विषयों से सम्पर्क करने के, उन्हें ग्रहण करने के तथा उनका बोध करने के। 'गणधरवाद' में कहा गया है - "जिस प्रकार देवदत्त अपने प्रासाद की खिड़कियों से बाहर के पदार्थों और जीवों को देखता जानता है, और उनके प्रति प्रीति- अप्रीति करता है, उसी प्रकार सांसारिक कर्मावृत जीव' इन्द्रियों के माध्यम से बाह्य पदार्थों से सम्पर्क करता है। उन्हें जानता-देखता है। अतः इन्द्रियों के द्वारा ही प्राणी जगत् से सम्पर्क स्थापित करता है और अपने कर्तव्य तथा अधिकार का विवेक भी करता है। इन्द्रियों की क्षमता बढ़ाने से अनेक प्रकार के लाभ इन्द्रियाँ जब इतनी उपयोगी हैं, उनके द्वारा बाह्य जगत् के दृश्य पदार्थों और जीवों के साथ सम्पर्क किया जा सकता है, और उनके स्वभाव, कार्य में उपयोगिता, सहयोग आदि लेकर उन्हें कार्यक्षम बना दिया जाए तो उनसे संसार के अनेक निजी सुख-सुविधाओं से लेकर अन्य व्यक्तियों से सहयोग लेने तथा कई अध्यापकों, आचार्यों, गुरुओं, विद्वानों, विचारकों आदि के सहयोग और सहचारिता से उनके ज्ञानविज्ञान और अनुभवसिद्ध वचनों को श्रवण करके लाभ उठाया जा सकता है। जैसे- श्रोत्रेन्द्रिय का अत्यधिक विकास कर लिया जाए तो कानों से दूर की, व्यवहित शब्दों की, पर्दे के पीछे या दीवार के उस पार के, हजारों कोस दूर के, अतीतअनागत के शब्दों को सुना जा सकता है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय भी बहुत ही उपयोगी इन्द्रिय है। उसकी कार्यक्षमता भी सर्वविदित है। यदि चक्षुरिन्द्रिय की दृश्यप्रेक्षण शक्ति का विकास किया जाए तो मनुष्य उन चमत्कारों को भी इन्हीं आँखों से देख सकेगा, जो भूतकाल में अध्यात्मविज्ञानियों के लिए ही सम्भव थे। संजय ने अपनी दिव्य दृष्टि से घर बैठे महाभारत के दृश्य देखे थे और १. महावीर की साधना का रहस्य से भावांश ग्रहण, पृ. ७९ २. गणधरवाद में देखें- भगवान् महावीर और वायुभूति का संवाद | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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