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५४२ . कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कमों का आनव और संवर (६) हैं। अर्थात् जिस क्रिया या प्रवृत्ति से जीव में कर्मों का नाव-आगमन होता है, वह आसव है। आम्नव कर्मों का प्रवेशद्वार है। - यह बिना बुलाए आ जाता है या जीव इसे बुलाता है ? वैसे तो कर्म सिद्धान्त के रहस्य से अनभिज्ञ लोग कह देते हैं-हम कर्मों को कहाँ बुलाते हैं ? कहाँ उन्हें आने का न्यौता देते हैं ?
पर कर्म विज्ञान मर्मज्ञों का कहना है-जीव सीधा तो उन्हें नहीं बुलाता, किन्तु परोक्षरूप से वह मन-वचन काया द्वारा ऐसी-ऐसी प्रवृत्ति कर बैठता है, जिससे कर्म आ धमकते हैं।
कीड़े-मकोड़े, मच्छरों और मक्खियों को कौन बुलाता है ? कौन उन्हें निमंत्रण देता है ? पर मनुष्य जब घर में गन्दगी का ढेर कर देता है, नाली में पानी सड़ने देता है, सफाई नहीं करता है, घी, शक्कर आदि से बनी चीजों को खुली रख देता है, तो कीड़ेमकोड़ों, साँप-बिच्छुओं एवं मच्छरों को बुलाने का आमंत्रण हो ही गया । बीमारियों को सीधे कौन बुलाता है ? परन्तु पेट में गरिष्ठ और मिर्च मसालेदार चीजें, मिठाइयाँ या तली हुई वस्तुएँ खाने पर या भूख से अधिक दूंसने पर या खान-पान, रहन-सहन अनियमित होने पर, अपनी इन्द्रियों पर संयम न रखने पर बीमारियाँ बहुत शीघ्र ही आपके शरीर में प्रविष्ट हो जाती हैं। जहाँ शरीर कमजोर हुआ कि अनेक रोग आक्रमण कर देते हैं।
दुर्भाग्य कोई नहीं चाहता, परन्तु जीवन में सद्धर्म, नैतिकता, एवं सच्चरित्रता के प्रति आलस्य और प्रमाद के रूप में, तथा शुभ कार्यों के प्रति उदासीनता एवं उपेक्षा के रूप में व्यक्ति दुर्भाग्य के स्वागत का थाल स्वयं सजाता है। इसी प्रकार दरिद्रता और पिछड़ेपन तक की अनेक कठिनाइयों को कोई न्यौत कर नहीं बुलाता, परन्तु अधिकांश व्यक्ति उनके रोकथाम के लिए जागरूकता और सतर्कता भी तो नहीं बरतते और अज्ञान, एवं अशिक्षा के घोर अन्धकार में ही डूबे रहना चाहते हैं। फिर दरिद्रता और पिछड़ापन क्यों नहीं आएंगे? कर्मों का प्रवेश किस जीव में और कैसे?
बिजली सूखी लकड़ी, प्लास्टिक या कांच आदि पर नहीं गिरती, जिस व्यक्ति ने पैर में प्लास्टिक के जूते चप्पल आदि पहने होंगे, या सूखी लकड़ी की किसी चीज पर खड़ा होगा, उसे बिजली नहीं पकड़ती, न ही करेंट मारती है, परन्तु जहाँ नमी होगी, या कोई धातु होगी, अथवा किसी धातु आदि से या पानी से स्पर्श होगा, वहीं बिजली पकड़ेगी, एवं करेंट मारकर सारे शरीर में प्रविष्ट हो जाएगी। ब्राडकास्ट की गई ध्वनि तरंगें आकाश में सर्वत्र घूमती रहती हैं, परन्तु प्रगट वहीं होती हैं, जहाँ रेडियो या ट्रांजिस्टर अथवा टी. वी. यंत्र का स्विच खुला हुआ हो।
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