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________________ ७५२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६). वाणी केवल शब्दोच्चारण नहीं, विभिन्न प्रेरणाओं से परिपूर्ण है ___अतः वाणी केवल शब्दों का उच्चारणमात्र ही नहीं है, अथवा केवल किसी वस्तु की जानकारी देना मात्र ही नहीं है, अपितु उसमें वक्ता की-बोलने वाले, शब्दोच्चारण कर्ता की अनेकानेक भाव-अभिव्यञ्जनाएँ, संवेदनाएँ, प्रेरणाएँ एवं शक्तियाँ भी निहित हैं। यदि ऐसा न होता तो वाणी में मित्रता एवं शत्रुता, वत्सलता और आत्मीयता तथा वैर-विरोध एवं द्वेष-घृणा उत्पन्न करने की सामर्थ्य न होती। ____ आगमों में हम पढ़ते हैं कि अमुक महापुरुष की एक बार की वाणी (प्रवचन) सुनकर अमुक व्यक्ति को संसार से विरक्ति हो गई, वह सांसारिक विषय-सुखों एवं गार्हस्थ्य प्रपंचों से तथा आरम्भ-परिग्रह से मुक्त होने के लिए तत्काल प्रतिबुद्ध हो गया। उसके अन्तर् में वैराग्य लहराने लगा। उसका मन मयूर अध्यात्म विकास के लिए उछलने लगा। यदि वाणी केवल शब्दों का उच्चारण ही होती तो उसका उपयोग दूसरों को उठाने और गिराने में न हो पाता। कटु वाणी सुनते ही मनुष्य कोपाविष्ट हो जाता है, झल्ला उठता है, उसकी स्थिति न कहने योग्य को कहने और न करने योग्य को करने की बन जाती है। इसके विपरीत कोमल, मृदु और वात्सल्यमयी प्रोत्साहक वाणी सुनते ही व्यक्ति में सत्कार्य को करने का उत्साह जाग जाता है; धर्म, समाज और राष्ट्र के लिए, पीड़ित मानव जाति के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने की भावना लहराने लगती है।' इसीलिए पाणिनि व्याकरण के महाभाष्य में कहा गया है-एक शब्द भी सम्यकप से ज्ञात (सम्यक् अर्थज्ञान) हो जाने पर तथा सम्यक्प से प्रयुक्त किये जाने पर स्वर्ग में तथा इहलोक में कामधेनु के समान मनश्चिन्तित सकल सुमनोरथों की पूर्ति करने वाला होता है। इससे अंदाजा लग सकता है कि वाणी की शक्ति का जीवन में कितना अधिक योगदान है। ____ यह सत्य है कि तर्क, तथ्य, उत्साह एवं भावुकता से परिपूर्ण शब्द प्रवाह देखते ही देखते जनसमूह का विचार बदल देता है और उक्त प्रभावोत्पादक जोशीले भाषण से मुग्ध होकर असंख्य मनुष्य कुशल प्रवक्ता के वचनों का अनुसरण करने लगते है। द्रौपदी ने 'अंधे के पुत्र अंधे ही होते हैं' इस प्रकार के थोड़े से ही व्यंगभरे अपमानजनक शब्द दुर्योधन को लक्ष्य में करके कहे थे। उसका घाव दुर्योधन के मन में इतना गहरा हो गया था कि महाभारत के संग्राम के रूप में उसकी भयंकर प्रतिक्रिया सामने आई और अठारह अक्षौहिणी सेना का संहार हो गया। १. अखण्ड ज्योति जनवरी १९७६ से भावांश ग्रहण पृ. ५७ २. एकः शब्द सम्यग्ज्ञातः सुष्ठु प्रयुक्तः स्वर्गे लोके च कामधुक् भवति। -नवाहिक भाष्य में शब्दशक्तिवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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