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________________ ७१४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) संवर की बाँध कैसे बाँधे, कौन-से साधन या साधना अपनाएँ? प्रश्न होता है - संवर की बांध को बाँधने में कौन-कौन से साधन होने चाहिए? तथा किन-किन साधनों का उपयोग किस-किस प्रकार से करना चाहिए ? एक इंजीनियर जब बाँध बनाता है तो अपनी अनुभवयुक्त बुद्धि से पहले उसका नक्शा बनाता है, फिर उसमें किन-किन साधनों (मिट्टी, पानी, औजार, उपकरण, परिश्रम आदि) की आवश्यकता पड़ेगी, इसकी सारी सूची बनाता है, इस्टीमेट तैयार करता है और अमुक समय में सुदृढ़ बाँध बनाकर तैयार कर देता है, और नदी में आने वाली बाढ़ को रोककर उसके पानी का मार्गान्तरीकरण कर देता है, उसके बहने के मार्ग को परिवर्तित कर देता है, कहीं-कहीं पानी बहने में रुकावट आती हो, कचरा-गंदगी अधिक हो तो उसका शुद्धीकरण (उदात्तीकरण) भी करता है। कर्मविज्ञानमर्मज्ञ जागृत आत्मारूपी इंजीनियर आस्रवों की बाढ़ को रोकने के लिए संवर की बाँध बनाते समय ठीक इसी प्रकार की योजना बनाता है। मन में संकल्प करता है, जागृतिपूर्वक संवर की साधना प्रारम्भ करता है। संबर की दृढ़ साधना से ही मजबूत बांध बन सकेगी संवर की भी एक साधना है। बिना साधना के संवर की सिद्धि नहीं हो सकती । केवल यह जान लेने से कि आम्रवों का निरोध करना संवर है, अथवा इतना कह देने मात्र से या आम्रवों को केवल जान लेने भर से संवर कहीं हो जाएगा। संवर की साधना के लिए जब मनुष्य प्रवृत्त होगा, तब सबसे पहले जिन-जिन आम्नवों ने उसके मन, वचन, काया और चित्त, बुद्धि, प्राण और हृदय में जड़ जमा रखी है, जो इन्द्रियाँ आम्रवों को लाने में अभ्यस्त हो गई हैं; उनसे संघर्ष करना पड़ेगा। संवर की बाँध बनाने के लिए भी पहले आनवों को भलीभांति जानना होगा। फिर वे आनव कहाँ-कहाँ अपना मोर्चा लगाए हुए हैं? उनका चक्रव्यूह कहाँ-कहाँ किस-किस रूप में काम कर रहा है ? इसे भलीभाँति जानना होगा। उनके साथी एवं सहायक कौन-कौन बने हुए हैं? इन सब बातों को जानने के पश्चात् साहसपूर्वक उनको उखाड़ने और हटाने के लिए अथवा उनके साथियों और सहायकों में घुसे हुए दोषों के परिमार्जन के लिए संघर्ष करना होगा। साहस किये बिना संवर का बाँध नहीं बन सकता। संवर की दृढ़ साधना ऐसे हो सकती है मन, वचन, काया आदि कर्मों के आगमन (आस्रव) में सहायक हैं, उनके साथ राग, द्वेष, कषाय, मोह, आसक्ति, प्रमाद आदि दोष लगकर उन्हें आम्रवों की बाढ़ को लाने में अभ्यस्त तथा उत्तेजित करते हैं, उनका परिमार्जन करने पर ही संवर की सुदृढ़ बाँध बन सकेगी। इन आन्तरिक अवांछनीयताओं को हटाकर उनके स्थान पर उत्कृष्टताओं की स्थापना करने के प्रयोग का नाम ही साधना है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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