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________________ सामाजिक सन्दर्भ मेंउपयोगिता के प्रति आक्षेप और समाधान कर्मसिद्धान्त की उपादेयता पर नाना आक्षेप कर्मसिद्धान्त विश्वव्यापक है, सार्वजनीन है। वह अत्यन्त क्षुद्र एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों, तिर्यंचों, मानवों और देवों तक के जीवन को अथ से इति तक स्पर्श करता है। पिछले पृष्ठों में कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता के विषय में अनेक युक्तियाँ, प्रामाणिक सूक्तियाँ और महान् वीतराग पुरुषों एवं साधकों की अनुभूतियाँ प्रस्तुत की गई हैं। इतने सब प्रमाणों के बावजूद भी जैनकर्मसिद्धान्त की उपादेयता एवं उपयोगिता के विषय में नाना आक्षेप हैं। उनको युक्तियुक्त समाधान जब तक नहीं हो जाता, तब तक जैनकर्मसिद्धान्त की उपयोगिता संशयास्पद बनी रहती है। अतएव यहाँ हम सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में इसकी उपयोगिता के बारे में किये गएआक्षेपों को स-समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। जोहन मेकेंजी द्वारा एक आक्षेप और उसका समाधान इस सन्दर्भ में एक आक्षेप पाश्चात्य आचार-दर्शन के विशिष्ट विद्वान जोहन मैकेंजी ने किया है। वे अपनी पुस्तक 'हिंदू एथिक्स' में लिखते हैं-"कर्म-सिद्धान्त में लोकहित के लिए उठाये गए कष्ट और पीड़ा की प्रशंसा निरर्थक है।" . . इसका स्पष्टीकरण करते हुए डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं कि 'इस आक्षेप से मैकेंजी का तात्पर्य यह है कि यदि कर्म-सिद्धान्त में निष्ठा रखने वाला व्यक्ति लोकहित के कार्य करता है, तो भी प्रशंसनीय नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह वस्तुतः लोकहित नहीं, स्वहित ही कर रहा है।...... कर्म-सिद्धान्त के अनुसार लोकहित में भी स्वार्थबुद्धि होती है। अतः लोकहित के कार्य प्रशंसनीय नहीं माने जा सकते।"२ 9. The doctrine of Karma makes our admiration of pain and suffering endured by men for the sake of others absurd. -Hindu Ethics (By John Makenzie M.A.)p.224 .२. जैन कर्म सिद्धान्त : तुलनात्मक अध्ययन से,पृ.३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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