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नैतिकता के सन्दर्भ में-कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता ६७
"आज के व्यक्ति की दृष्टि 'वर्तमान' को (तथा 'स्व' को) ही सुखी बनाने पर है। वह अपने वर्तमान को अधिकाधिक सुखी बनाना चाहता है। अपनी सारी इच्छाओं को इसी जीवन में तृप्त कर लेना चाहता है। आज का मानव संशय और दुविधा के चौराहे पर खड़ा है। वह सुख की तलाश में भटक रहा है। धन (येन-केन-प्रकारेण) बटोर रहा है। भौतिक उपकरण जोड़ रहा है। वह अपना मकान बनाता है। आलीशान इमारत बनाने के स्वप्न को मूर्तिमान करता है। मकान सजाता है। सोफासेट, वातानुकूलित व्यवस्था, (फ्रीज, रेडियो, टी.वी.) महंगे पर्दे, प्रकाश और ध्वनि के आधुनिकतम उपकरणा एवं उनके द्वारा रचित मोहक प्रभाव; यह सब उसको अच्छा लगता है।" ___"जिन लोगों को जिंदगी जीने क न्यूनतम साधन उपलब्ध नहीं हो पाते, वे संघर्ष करते हैं। आज वे अभाव का कारण, अपने विगत (इस जन्म में या पूर्वजन्म में पूर्वकृत) कर्मों को न मानकर (न ही अपने जीवन में नीति और धर्म का आचरण करके अशुभकर्मों को काटकर, शुभकर्मों में संक्रमित करके) सामाजिक व्यवस्था को मानते हैं। (स्वयं अपने जीवन का सुधार न करके, अपने जीवन में नैतिकता और धार्मिकता का पालन एवं पुरुषार्थ न करके तथा संयम और सादगी का जीवन न अपनाकर) केवल समाज से अपेक्षा रखते हैं कि वह उन्हें जिंदगी जीने की स्थितियाँ मुहैया कराये। यदि ऐसा नहीं हो पाता तो चे हाथ पर हाथ धर कर बैठने के लिए तैयार नहीं हैं। वे सारी सामाजिक व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट कर देने के लिए बेताब हैं।"१ - उपयुक्त मन्तव्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि कर्मसिद्धान्त पूर्वकृत कर्मों को काटने के लिए तथा अशुभ कर्मों का निरोध करने या शुभ में परिणत करने के लिए जिस नैतिकता एवं धार्मिकता (अहिंसा, संयम, तप आदि) के आचरण की बात करता है, वह जिन्हें पसंद नहीं वे लोग केवल हिंसा, संघर्ष, तोड़फोड़, अनैतिकता एवं दुर्व्यसनों आदि का रास्ता अपनाते हैं, उसका फल तो अशान्ति, हाय-हाय, बेचैनी और नारकीय जीवन तथा दुःखद अन्त के सिवाय और क्या हो सकता है ?
इससे यह समझा जा सकता है कि कर्मसिद्धान्त परिवार, समाज या राष्ट्र आदि में नैतिकता का संवर्धन करने और अनैतिकता से व्यक्ति को दूर रखने में कितना सहायक हो सकता है?
अतः कर्मसिद्धान्त के इन निष्कर्षों को देखते हुए डॉ. जोन मेकेंजी का यह आक्षेप भी निरस्त हो जाता है कि "कर्मसिद्धान्त में ऐसे अनेक कर्मों को भी शुभाशुभ फल देने वाला मान लिया गया है, जिन्हें सामान्य नैतिकदृष्टि से अच्छा या बुरा नहीं कहा ... जाता। २
:. जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में 'कर्म का सामाजिक सन्दर्भ' लेख से, पृ. २८९ . २. हिन्दू एथिक्स पृ. २१८
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