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________________ ६४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) एवं द्वन्द्व अभिव्यक्त किया है। उसकी दृष्टि में 'सैक्स' सर्वाधिक प्रमुख हो गया है। इसी एकांगी और निपट स्वार्थी दृष्टिकोण से जीवन को विश्लेषित एवं विवेचित करने का परिणाम 'कीन्से रिपोर्ट के रूप में सामने आया। इस रिपोर्ट ने सैक्स के मामले में वर्तमान मनुष्य की मनःस्थितियों का विश्लेषण किया है। .........संयम की सीमाएँ टूटने लगी। भोग का अतिरेक सामान्य व्यवहार का पर्याय बन गया। जिनके जीवन में यह अतिरेक नहीं था, उन्होंने अपने को मनोरोगी मान लिया। सैक्स-कुण्ठाओं के मनोरोगियों की संख्या बढ़ती गई। वासनातृप्ति ही जिंदगी का लक्ष्य हो गया। पाश्चात्य जीवन एवं रजनीशवाद आदि ने इस आग में ईंधन का काम किया। प्रेम का अर्थ इन्द्रिय-विषयभोगों की निधि, निर्मर्याद तृप्ति को ही जीवन का सर्वस्व सुख मान लिया। भार्या के लिये 'धर्मपत्नी' शब्द ने भोगपत्नी' का रूप ले लिया। नैतिकता को धता बताकर पति-पत्नी प्रायः आदर्शहीनता पर उतर आये हैं। पाश्चात्य जगत् में बच्चों की भी गणना एक विपत्ति में होने लगी है। माँ-बाप उन्हें अभिशाप' मानने लगे हैं। पति-पत्नीमिलन जब नैतिकता को ताक में रखकर विशुद्ध कामुक प्रयोजन के लिये ही रह जाता है, तब कृत्रिम प्रजनन-निरोध, भ्रूणहत्या या गर्भपात में कोई दोष नहीं समझा जाता। इस अनैतिक कर्म के फलस्वरूप स्त्री को कई बीमारियाँ लग जाती हैं; पुरुष भी अतिभोग का शिकार होकर अनैतिक कर्म का दण्ड किसी न किसी बीमारी, विपत्ति या अर्थहानि के रूप में पाता है। पाश्चात्य जगत् की तरह भारत में भी यह प्रचलन अधिक होता जा रहा है। बच्चे जब पेट में आते हैं या जन्म लेने लगते हैं, उनके माँ-बाप की कामुकवृत्ति की पूर्ति में बाधक बनते हैं। फलतः पेट में आए हुए बच्चों से पिण्ड छुड़ाने के लिए कृत्रिम प्रजनन-निरोध का सहारा लिया जाता है। जन्मे हुए बच्चों से भी कब, किस तरह पिण्ड छूटे, इसकी चिन्ता उनके माता-पिता को होने लगी है। सौन्दर्य को हानि न पहुँचे इसलिए बच्चों को माता का नहीं, बोतल का दूध पीना पड़ता है। कई परिवारों में तो अधिकांश बच्चों के पालन-पोषण की झंझट से बचने के लिए उन्हें पालन-गृहों में दे दिया जाता है। पैसा देकर इस जंजाल से माँ-बाप छुट्टी पा लेते हैं। फिर स्वच्छन्द घूमने-फिरने और हंसने-खेलने की सुविधा हो जाती है। जैसे ही बालक कमाऊ हुआ, पाश्चात्य जगत् में माँ-बाप से उसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता। पश-पक्षियों में भी तो यही प्रथा है। उड़ने-चरने लायक न हो तभी तक माता उनकी सहायता करती है। बाप तो उस स्थिति में भी ध्यान नहीं देता। बच्चों की १. जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित 'कर्म का सामाजिक मन्द मान से भावांश पृ. २८९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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