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नैतिकता के सन्दर्भ में-कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता ६३
जीवन-यापन भारी पड़ रहा था और उन्होंने इस तरह रिब-रिब कर मरने की अपेक्षा, नींद की अधिक गोलियाँ खाकर मरना अधिक अच्छा समझा; .....क्योंकि वयस्क होने के बाद सन्तान ने उनकी ओर मुंह मोड़कर भी नहीं देखा था।"
बूढ़े अभिभावकों की इस दुर्गति का कारण प्रायः वे स्वयं ही हैं। उन्होंने अपने उन बालकों को अभिशाप समझकर अपनी जवानी में उनके प्रति उपेक्षा रखी। न तो स्वयं बूढों ने उस समय नैतिकता रखी और न ही अपने बच्चों को नैतिकता के संस्कार दिये। उन्होंने ही नैतिक उच्छंखलता को जन्म दिया, वही नैतिक उच्छंखलता उनके बालकों में अवतरित हुई। जो परम्परा से पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में उनके इस अनैतिकतायुक्त कर्म का फल दुःख, विपत्ति, एकाकीपन, नीरस, असहाय जीवन-यापन, विलाप आदि के रूप में उन्हें और उनकी सन्तान को देखना पड़ा। जैनकर्मविज्ञान यही तो बताता है। कर्मसिद्धान्त पर अनास्था और अविश्वास लाकर जिन्होंने अपने जीवन में नीति एवं धर्म से युक्त विचार-आचार पर ध्यान नहीं दिया और नैतिकता के सन्दर्भ में साधारण मानवीय कर्तव्य की भी उपेक्षा कर दी, उन्हें उन दुष्कर्मों का फल भोगना पड़ा और उनकी संतान को भी विरासत में वे ही अनैतिकता के कुसंस्कार मिले।
निष्कर्ष यह है कि शरीर के साथ ही अपने जीवन का अन्त मानकर कर्मविज्ञान के सिद्धान्त को व्यर्थ की बकवास मानने वाले तथा नैतिकता से रहित, अनैतिक आचरणों से युक्त जीवन यापन करने वाले थके, हारे, बूढ़े, घिसे व्यक्तियों की आँखों में आशा की चमक कैसे आ सकती है ? ऐसी स्थिति में वे निरर्थकतावादी बन जाएँ तो कोई आश्चर्य नहीं। हिप्पीवाद इसी नीरस निरर्थक जीवन की निरंकुश अभिव्यक्ति है। अभी इसका प्रारम्भ है। कर्मविज्ञान के प्रति अनास्था जितनी प्रखर होगी, उतना ही यह क्रम उग्र होता जाएगा। हो सकता है, इस नीरसता एवं निरर्थकता की आग में झुलसकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति भी स्वाहा हो जाए। ___"वर्तमान मानव का विश्वास कर्मविज्ञान से सम्बन्धित आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग-नरकादि परलोक, धर्म, कर्म, कर्मफल, नैतिकता, धार्मिकता आदि पर से उखड़ता जा रहा है। आस्था की इन जड़ों के उखड़ने से, शेष सभी अंगोपांग उखड़ जाएँगे, इसका कोई विचार नहीं है।"
वर्तमान में व्यक्ति के चिन्तन को 'फ्रायड' और 'मार्क्स' दोनों ने अत्यधिक प्रभावित किया है। फ्रायड ने व्यक्ति की प्रवृत्तियों एवं सामाजिक नैतिकता के बीच संघर्ष }. अखण्डज्योति मार्च १९७२ के 'अनास्था हमें प्रेत-पिशाच बना देगी' लेख के आधार पर पृ. १८ 1. अखण्डज्योति मार्च १९७२ के 'अनास्था हमें प्रेत-पिशाच बना देगी लेख से साभार उद्धृत, पृ.१८ 1. अखण्ड ज्योति मार्च १९७२ के 'अनास्था हमें प्रेत-पिशाच बना देगी' लेख के आधार पर पृ.१९
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