________________
नैतिकता के सन्दर्भ में-कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता ६१
नैतिकता का प्राण मानवता है। तथा उसके अन्य अवयव हैं-न्याय, नीति, मानवमात्र के साथ भाईचारे का व्यवहार, अपने ग्राम, नगर, राष्ट्र, पड़ौसी और परिवार आदि के साथ सुख-दुःख में सहायक बनना, अपने कर्तव्य का पालन, ले-दे की व्यावहारिक नीति आदि। नैतिकता का पालन न होने पर कैसी-कैसी कठिनाइयाँ और विपत्तियाँ आती हैं ? कर्मसिद्धान्त की दृष्टि से वर्तमान में इस का प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। नैतिकता का उल्लंघन या पालन वर्तमान में ही शुभाशुभ फलदायक
नैतिकता का या नीतिनियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को कर्मसिद्धान्त के अनुसार कितनी विपन्नता, उपेक्षा, अवहेलना, कर्तव्य-विमुखता, दुःख-दारिद्र्य का सामना करने का शिकार होना पड़ता है, इसके ज्वलन्त उदाहरण वर्तमान मानव-जीवन में देखे जा सकते हैं।
नैतिकता के पालन में आस्था व्यक्ति को सदाचारी तथा पारस्परिक सहानुभूति प्रदान में अग्रसर बनाती है। उससे कर्तव्य-निष्ठा का आनन्द प्राप्त होता है। नैतिकता की प्रवृत्तियाँ व्यक्ति के जीवन में सुख और सन्तोष का अमृत भर देती हैं और समाज के स्तर
और गठन को सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित बनाती हैं। ... नैतिकता के आदर्शों के प्रति आस्थाएँ लड़खड़ाने पर व्यक्ति ही नहीं, वह जाति भी अपने ही अनैतिक कर्मों से स्वयमेव चिन्तित, व्यथित और स्वार्थपरायण बन जाती है।
(ख) समावन्नाण संसारे नाणागोत्तासु जाइसु। 'कम्मा नाणाविहा कट्ट पुढो विसंभिया पया ॥२॥ एगया देवलोगेसु नरएसु वि एगया! एगया आसुरंकायं अहाकम्मेहिं गच्छई॥३॥ एगया खत्तिओ होइ, तओ चांडाल-बुक्सो। तओं कीड पयंगो य, तओ कुंथु पिवीलिया ॥४॥ एवमावट्ट जोणिसु पाणिणो कम्मकिदिवसा। न निविज्जंति संसारे सव्वढेसु व खत्तिया ॥५॥ कम्मसंगेहिं सम्मूढा दुक्खिया बहुवेयणा। अमाणुसासु जोणीसु विणिहम्मति पाणिणो ॥६॥ कम्माणं तु पहाणाए आणुपुब्बी कयाइ छ। जीवा सोहिमणुपत्ता आययंति मणुस्सयं ॥७॥
-उत्तराध्ययन अ.३,गा.१ से ७ तक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org