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________________ ५६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) इस्लाम धर्म में नैतिक आज्ञाएँ हैं, पर अमल नहीं यद्यपि इस्लाम धर्म में भी अनैतिक कर्मों से बचने और नैतिक कर्म (आचरण) करने का 'कुरान शरीफ' आदि धर्मग्रन्थों में विधान है। वस्तुतः इस्लाम धर्म नैतिकताप्रधान है। उसके नैतिक विधानों का उल्लेख करते हुए डॉ. निजाम उद्दीन लिखते हैं "जब हम सामाजिक कर्मों (मनुष्य के अन्य मनुष्यों के साथ व्यवहारों) की ओर ध्यान देते हैं तो निम्न बातें सामने आती हैं-(१) अपने सम्बन्धियों, याचकों, दीन-निर्धनों, अनाथों को अपना हक दो; (२) मितव्ययी बनो, फिजूल खर्च करने वाले शैतान के भाई हैं; (३) बलात्कार के पास भी न फटको, यह बहुत बुरा कर्म है; (४) अनाथ की माल-सम्पत्ति पर बुरी नीयत मत रखो; (५) प्रण या. वचन की पाबन्दी करो, (६) पृथ्वी पर अकड़ कर मत चलो; (७) न तो अपना हाथ गर्दन से बांधकर चलो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ो, कि भर्त्सना, निन्दा या विवशता के शिकार बनो; (८) माता-पिता के साथ सद्व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों वृद्ध होकर रहें तो उन्हें उफ तक न कहो, न उन्हें झिड़ककर उत्तर दो, वरन् उनसे आदरपूर्वक बातें करो; (९) दरिद्रता के कारण अपनी सन्तान की हत्या न करो। उनकी हत्या बहुत बड़ा अपराध है; (१०) किसी को नाहक कल मत करो; (११) किसी ऐसी वस्तु का अनुकरण मत करो, जिसका तुम्हें ज्ञान न हो; (१२) मजदूर को उसका पसीना सूखने से पहले मजदूरी दे दो; (१३) अपने नौकर के साथ समानता का व्यवहार करो, जो स्वयं खाओ पहले वही उसे खिलाओ, पहनाओ; (१४) नाप कर दो तो पूरा भर कर दो, तौलकर दो तो तराजू से पूरा तौल कर दो; (१५) अमानत में खयानत (बेईमानीं) मत करो।"१ वास्तव में ये नैतिकता-प्रधान शुभ कर्म हैं, परन्तु इस्लाम धर्म में एक तो पुनर्जन्म को नहीं माना गया; दूसरे, जितना जोर खुदा की इबादत, रसूलों (पैगम्बरों) के प्रति विनम्रता पर दिया गया है, जिसमें नमाज, रोजा, हज और जकात आदि कर्मकाण्ड प्रमुख हैं, उतना जोर इस पर नहीं दिया गया कि अनैतिक कर्मों (आचरणों) से न बचने से यहाँ और परलोक में उसका दुष्फल भोगना पड़ता है बल्कि 'रोज़े मशहर' में लिखा है कि कयामत (अन्तिम निर्णय) के दिन अपने कर्मों का हिसाब अल्लाह के दरबार में हाजिर होकर देना होता है; इस कारण व्यक्ति बेखटके जीववध, मांसाहार, शिकार, १. देखें जिनवाणी कर्म सिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित 'इस्लाम धर्म का स्वरूप' लेख से पृ. २१२, २१३ २. (क) देखें-जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित ‘इस्लाम धर्म का स्वरूप' लेख से, पृ. २०९ (ख) 'रोजे मशहर' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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