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नैतिकता के सन्दर्भ में-कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता ५१
तथा बाहर नाव करते देह के विभिन्न मल-द्वारों को देखे और यह सब देखकर वह शरीर के वास्तविक स्वरूप का पर्यवेक्षण करे।"
इसी प्रकार 'उत्तराध्ययन सूत्र' में चित्तमुनि का जीव सम्भूति के जीव-ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को वर्तमान के नैतिक आचरण और उसके भावी सुफल की प्रेरणा देते हुए कहता है-"यदि तुम भोगों को छोड़ने में असमर्थ हो तो हे राजन्! कम से कम आर्य कर्म (नैतिक आचरण) तो करो। नीति-धर्म में स्थित रहकर यदि तुम अपनी प्रजा के प्रति अनुकम्पाशील बनोगे तो भी यहाँ से भरकर वैक्रियशक्तिधारक देव तो हो ही जाओगे।"२ ___ वर्तमान के अनैतिक आचरणों कर्मों) का भावी दुष्परिणाम बताते हुए कहा गया है-जो अज्ञानी मानव हिंसक है, मृषादी है, लुटेरा है, दूसरों का धन हड़पने वाला है, चोर है, कपटी (ठग) है, अपहरणकर्ता एवं शठ (धूर्त) है तथा स्त्री एवं इन्द्रिय-विषयों में गृद्ध है, महारम्भी-महापरिग्रही है, माँस-मंदिरा का सेवन करने वाला है, दूसरों पर अत्याचार एवं दमन करता है, ऐसा तुन्दिल व मुस्टंडा है, वह नरकायु का आकांक्षी है।
इसी प्रकार मृगों के शिकार जैसे अनैतिक कर्म को करते हुए संयति राजा को महामुनि गर्दभालि ने अहिंसा और अभयदान का उपदेश देकर उससे हिंसादि पापानव (पापकर्म) छुड़ाए और उसे सर्वजीवों का अभयदाता महाव्रती उच्चराजर्षि बना दिया। कर्मसिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में अनैतिक आचरणकर्ता को नैतिक बनने का उपदेश
इस प्रकार हम देखते हैं कि तीर्थंकरों, ज्ञानी महर्षियों तथा जैन श्रमणों द्वारा जिस किसी अनैतिक आचरणपरायण व्यक्ति को सदुपदेश दिया गया है, और नीतिधर्म के सन्मार्ग पर लगाया गया है, उसे कर्मसिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में ही शुभ-अशुभ कर्म, उसके उपार्जन करने के कारण और उसके शुभ-अशुभ परिणामों (फलों) का दिग्दर्शन कराया गया। नैतिक-अनैतिक कर्मों के कर्ता को कर्म ही फल देते हैं, ईश्वरादि नहीं ।
वैदिक, ईसाई, इस्लाम आदि धर्मों की तरह ईश्वर या किसी शक्तिविशेष का भय या उनके द्वारा समस्त प्राणियों को कर्मफल-प्रदान करने की बात नहीं बताई गई है। जैन
-आचारांग १/२/५
१. जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तेहा अंतो। पंडिए पडिलेहाए।" २. उत्तराध्ययन अ. १३ गा.३२ चित्तसम्भूतीय। ३. वही, अ.७ गा.५, ६,७ । ४. देखें, उत्तराध्ययन का अठारहवाँ संयतीय अध्ययन
"अभओ पत्थिवा तुज्झ अभयदाया भवाहि या अणिच्चे जीवलोगंमि किं हिंसाए पसज्जसि ॥"
-उत्तरा.अ.१८/११
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