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________________ ५२४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) विपाकसूत्र के मूलस्रोत और फलभोग का वर्णन विपाकसूत्र के प्रत्येक अध्ययन में कथानायक के पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के जीवन का वर्णन है। जो व्यक्ति दुःख से कराह रहे है, अथवा जो व्यक्ति सुख के अतल सिन्धु पर तैर रहे हैं। उन सबके सम्बन्ध में जिज्ञासा प्रकट की गई है कि उनकी ऐसी दुःखद या सुखद स्थिति किस कारण से हुई ? पूर्वजन्म में यह कौन था, कैसा था? इस जन्म में यह ऐसा दुःख या सुख किस कारण से पा रहा है ? भगवान् महावीर अपने केवलज्ञान के अक्षय प्रकाश में उसके पूर्वजन्म के दुष्कृत्यों-सुकृत्यों को हस्तामलकवत् जानकर उसके पूर्वभव का वृत्तान्त सुनाते हैं, जिससे जिज्ञासु उसका रहस्य स्वयं समझ जाता है। अन्याय, अत्याचार, नरबलि, बालहत्या, आगजनी, वेश्यागमन, वेश्याकर्म, परस्त्रीगमन, मद्य-मांस-सेवन, प्रजापीड़न, द्यूत-क्रीड़ा, रिश्वतखोरी, निर्दोषजन-हत्या आदि ऐसे दुष्कृत्य हैं, जिनके परिणाम विविध यातनाओं के रूप में दुःखविपाक में बताए गए हैं। इसके विपरीत सुखविपाक में उत्कृष्ट सुपात्रदान के प्रतिफल के रूप में मानवीय एवं स्वर्गीय सुखसम्पदा तथा आध्यात्मिक विकास की उपलब्धि बताई गई है।' १. विपाकसूत्र प्रस्तावना (उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि) से सारांश उद्धृत, पृ. ४८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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