SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 542
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) श्रमण-पर्याय का पालन करके अन्त में समाधिमरणपूर्वक देहत्याग करके तृतीय देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यवकर पुनः मनुष्यभव प्राप्त करेगा। यहाँ संयम ग्रहण कर यावत्-महाशुक्र नामक सप्तम देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ से फिर मनुष्य भव प्राप्त करके पूर्ववत् दीक्षित होकर समाधिमरण पूर्वक देहत्याग करके नौवें आनत देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ की भवस्थिति पूर्ण कर पुनः मनुष्य भव पाकर दीक्षित होगा, फिर आरण नामक ग्यारहवें देवलोक में उत्पन्न होगा। वहां से च्यवकर मनुष्यभव को ग्रहण करके संयम की आराधना करके समाधिपूर्वक देहान्त होने पर सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर विमानवासी देवों में उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र में किसी सम्पन्न कुल में जन्म लेगा। वहाँ दृढ़प्रतिज्ञ की भांति संयम ग्रहण और आराधन करके सर्वकर्मों से मुक्त, सिद्ध, बुद्ध, यावत्-सर्वदुःखरहित होगा।' शेष नौ अध्ययनों का संक्षिप्त दिग्दर्शन दूसरे अध्ययन से लेकर दसवें अध्ययन तक नौ पुण्यशालियों का वर्णन पुण्यशाली सुबाहुकुमार की तरह ही है। नाम आदि में अवश्य अन्तर है। जैसे-(२) द्वितीय अध्ययन भद्रनन्दी का है। ऋषभपुर, नगर, धनावह राजा, सरस्वती रानी, उनका पुत्र भद्रनन्दी था। (३) तृतीय अध्ययन सुजातकुमार का है। वीरपुर नगर, वीरकृष्णमित्र राजा, श्रीदेवी रानी, सुजातकुमार पुत्र। (४) चतुर्थ अध्ययन-विजयपुर नगर, वासवदत्त राजा, कृष्णादेवी रानी, उनका पुत्र सुवासवकुमार। (५) पंचम अध्ययन-सौगन्धिका नगरी, अप्रतिहत राजा, सुकृष्णारानी, उनका पुत्र जिनदास। (६) छठा अध्ययन कनकपुर नगर, प्रियचन्द्र राजा, सुभद्रादेवी रानी, उनका युवराज पदासीन पुत्र-वैश्रमणकुमार। युवराज का पुत्र धनपति कुमार था, जो पूर्वभव में मणिचयिका नगरी का राजा मित्र था। उसी जन्म में निर्वाण को प्राप्त हुआ। (७) सप्तम अध्ययन महाबल है। महापुरनगर, महाराजबल राजा, सुभद्रादेवी रानी। उनका पुत्र महाबल कुमार था। (८) आठवाँ भद्रनन्दी नामक अध्ययन है। सुघोष नगर, अर्जुन राजा, तत्त्ववती रानी। उनका पुत्र भद्रनन्दी था। (९) नौवां महच्चन्द्र नामक अध्ययन है। चम्पानगरी, दत्त नामक राजा, रक्तवती देवी रानी। उनका पुत्र युवराज पदासीन महच्चन्द्र था। (१०) दसवाँ अध्ययन वरदत्त नाम का है। साकेत नगर, मित्रनन्दी राजा, श्रीकान्ता रानी। उनका पुत्र वरदत्त कुमार था। शेष समग्र वर्णन सुबाहुकुमारवत् समझना चाहिए। तत्त्वगत कोई अन्तर नहीं है। १. देखें, सुखविपाक अ. १ में वर्णित सुबाहुकुमार के अनगार बनने के संकल्प से लेकर दीक्षा और मुक्ति तक का वृत्तान्त पृ. १२६-१२७ २. देखें, सुखविपाक अ.२ से १0 तक के अध्ययनों में वर्णित कथानायकों के नाम, पिता-माता, नगर आदि का संक्षिप्त दिग्दर्शन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy