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५०४ कर्म-विज्ञान : भाग - २ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
कलकल करता हुआ अत्युष्ण जल या क्षारयुक्त तेल पिलाता; कितनों का इन्हीं चीजों को अत्यन्त गर्म करवाकर अभिषेक कराता । कइयों को चित्त गिराकर घोड़े का मूत्र, हाथी का मूत्र, यावत् भेड़ों का पेशाब पिलाता । कइयों को अधोमुख गिराकर वमन कराता, तथा इन्हीं चीजों को खिला-पिलाकर कष्ट देता ।
कितने ही अपराधियों को हथकड़ियों, बेड़ियों आदि से बन्धनबद्ध कराता, कइयों के शरीर को सिकोड़ता, मरोड़ता, कइयों को सांकलों से बांधता, कइयों के हाथ काट डालता, यावत् उनके अंगोपांगों को शस्त्रों से चीरता - फाड़ता था । कितनों को बेंतों, यावत् चाबुकों से पिटवाता ।
कई अपराधियों को ऊर्ध्वमुख गिराकर उनकी छाती पर शिला या भारी लक्कड़ रखवाकर ऊपर-नीचे करवाता और इस तरह उनकी हड्डियाँ चूर-चूर कर देता।
कितनों को चमड़े के तथा सूत के रस्सों से हाथों, पैरों को बंधवाता, फिर उन्हें कुँए में उल्टे लटकवाता, पानी में गोते खिलवाता । कई अपराधियों के अंगोपांग तलवारों, छुरों आदि से छिदवाकर उन पर क्षारमिश्रित तेलमर्दन करवाता।
कई अपराधियों के ललाट, कण्ठमणि, कोहनी, घुटनों, गट्टों आदि में लोहे की कीलें या बांस की सलाइयाँ ठुकवाता और बिच्छू के कांटों को शरीर पर लगवाता ।
कइयों के हाथ की अंगुलियों तथा पैर की अंगुलियों में मुद्गरों द्वारा सूइयाँ चुभवाता तथा दागने के शस्त्रविशेषों को प्रविष्ट कराता और उनसे जमीन खुदवाता।
कई अपराधियों के अंग शस्त्रों एवं नेहरनों से छिलवाता तथा जड़सहित या जड़रहित कुशाओं से या गीले चमड़ों से उनके शरीर कसकर बंधवाता, फिर उन्हें धूप में लिटाकर उनके सूखने पर तड़तड़ शब्दपूर्वक उनका उत्पाटन करवाता।' दुर्योधन के पाप कर्मों का दुःखद फल : छठी नरकभूमि में जन्म
इस प्रकार दुर्योधन चारकपाल इस प्रकार की क्रूरतापूर्ण प्रवृत्तियों को अपनी कर्म, विद्या एवं आचार बनाकर अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन करके ३१०० वर्ष का परम आयुष्य भोगकर उत्कृष्ट २२ सागरोपम की स्थितिवाले छठे नरक में नारकरूप में पैदा हुआ।
नन्दीषेण भव में भी पितृवध करके स्वयं राजा बनने का षड्यन्त्र रचा
फिर वह छठे नरक से निकलकर मथुरानगरी के श्रीदाम राजा की रानी बन्धुश्री
१.
आगे इस कथानक में उसका नाम नन्दीषेण लिखा गया है; तत्त्व केवलिगम्यम् । २. देखें, विपाकसूत्र श्रु. १ अ. ६ में पापाचारी दुर्योधन के द्वारा आचरित क्रूरकर्मों का वृत्तान्त
पृ. ७२, ७३, ७४, ७५
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