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४६४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
तुम्हारे है। मेरे तो शरीर और मन पर इतनी पाबंदियाँ होने के कारण जरा भी सुखसाता नहीं। नीरस और तुच्छ जीवन है यह! इसमें सुखसाता कहाँ ?"
पुण्डरीक राजा ने सोचा-'इन्हें संयम कष्टकर और भारभूत लग रहा है।' राजा ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयत्न किया कि आप धर्म एवं पुण्योपार्जन के अनुपम अवसर को छोड़कर क्यों असंयम और भोगों के पापपंक में फंसना चाहते हैं ? परन्तु इतना समझाने पर भी वे नहीं समझे। गृहस्थजीवन के भोगों में सुख पाने की तीव्र लालसा उनके तन-मन में घुड़दौड़ कर रही थी। अतः पुण्डरीक नृप ने अपने पारिवारिकजनों को बुलाकर उनके समक्ष कण्डरीक को अपने राज्य का राजा बना दिया। स्वयं त्याग के आग्नेय पथ पर चल पड़े। दीक्षा के त्यागपथ का स्वीकार किया।
इधर कण्डरीक राजा बनने के बाद राजसी एवं कामोत्तेजक गरिष्ठ आहार का खुलकर उपभोग करने लगे। विषयभोगों में तीव्रता से तल्लीन हो गए। आहार न पचने तथा भोगों के तीव्र उपभोग से उनके शरीर में उग्र वेदना बढ़ने लगी। भयंकर व्याधि से ग्रस्त होकर कण्डरीक सिर्फ तीन ही दिनों बाद मरणशरण हो गया। मरकर वह सातवीं नरक का मेहमान बना।
उधर पुण्डरीक मुनि बनकर तप संयम में लीन रहने लगे। असर-विरस आहार करने से उनके शरीर में भयंकर वेदना उत्पन्न हुई। अन्तिम समय निकट जानकर समाधि पूर्वक मृत्यु को स्वीकार किया। मरकर वे सर्वार्थसिद्ध देवलोक में उत्पन्न हुए। वहाँ से वे महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर संयम करणी करके मोक्ष प्राप्त करेंगे।
विशेषता यह रही कि कण्डरीक ने १000 वर्ष तक संयम का पालन कर जो पुण्यराशि उपार्जित की थी उसे सिर्फ तीन ही दिन में खो दी। वह इस खेल का अकुशल खिलाड़ी बना, जबकि पुण्डरीक जो विषयभोगों में, राज्य में, वैभव में ग्रस्त था, नई पुण्यराशि अर्जित नहीं कर रहा था, वह इस खेल का कुशल खिलाड़ी बना और तीन ही दिन में उत्कटभाव से संयम पालन कर पुण्यराशि उपार्जित करके सर्वार्थसिद्ध देवलोक में गया, भविष्य में मुक्ति प्राप्त करेगा। पुण्य-पाप के खेल में करारी हार : दूसरा रूपक
पुण्य-पाप के खेल में हार जाने का दूसरा रूपक इस प्रकार है-एक कुशल एवं अनुभवी वैद्य ने दुःसाध्य रोगपीड़ित राजा को बताया कि "आपके लिए आम खाना कुपथ्य कारक है। जिस दिन आम की एक फांक भी खा ली, उस दिन आपकी मृत्यु निश्चित है।" राजा ने वैद्य की सलाह मान ली।
१. ज्ञाताधर्मकथा से सारांश १९ अ.
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