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________________ विविध कर्मफल : विभिन्न नियमों से बंधे हुए ४०५ स्वरोदयशास्त्र में प्रत्येक स्वर के लिए ढाई-ढाई घड़ी (एक-एक घण्टा) का समय नियत किया गया है। सूर्योदय से लेकर प्रति ढाई घड़ी के पश्चात् स्वर बदल जाता है। सूर्यस्वर चलता हो, उस समय पिंगला नाड़ी सक्रिय होती है, जो तदनुसार कठोर कार्य करने वाले को शक्ति और क्षमता प्रदान करती है। जब चन्द्रस्वर चलता हो, उस समय इड़ा नाड़ी सक्रिय होती है, जो सौम्यकार्य तथा शान्ति एवं शीतलताजनक कार्यों में सहायक होती है। इसलिए वहाँ कहा गया-"चन्द्र नाड़ी चल रही हो, उस समय सौम्यकार्य करने चाहिए, तथा सूर्यनाड़ी प्रवाहित हो रही हो, उस समय कठोर, कठिन तथा दुष्कर श्रमसाध्य कार्य करने चाहिए, एवं सुषुम्ना (दोनों के बीच) का प्रवाह चल रहा हो उस समय भुक्ति (भोजन या उपभोग) एवं मुक्ति का फल देने वाले कार्य करने चाहिए।" ____ आशय यह है कि सूर्यस्वर में निर्दिष्ट कार्य करने से या तो अन्तराय कर्म का क्षय, उपशम या क्षयोपशम होना सम्भव है, या फिर सातावेदनीय कर्म का या शुभ नामकर्म का विपाक (फलोन्मुख) होना सम्भव है। इसी प्रकार चन्द्रस्वर में निर्दिष्ट कार्य करने से या तो ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण कर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम का अवसर मिलेगा, या फिर क्रोधादि मन्द होने से मोहनीय कर्म का उपशम भी सम्भव है, कर्म विपाक भी होगा तो शुभ कमों का होगा। . इसी आधार पर शास्त्र में बताया गया है कि किस समय स्वाध्याय करना चाहिए, किस समय नहीं ? ध्यान और आत्मसम्प्रेक्षण के समय का निर्देश भी इसी दृष्टि से किया गया है। अतः आत्मसम्प्रेक्षण धर्म जागरणा आदि के जितने भी नियम बताए गए हैं। उनके साथ काल को मुख्य आधार माना गया है।' कालगत नियमों पर अन्धविश्वास, अविश्वास और विश्वास का परिणाम किस समय में, किस काल में, किस कर्म का विपाक होता है? इसी तथ्य के आधार पर अनेक नियम बनाये गए हैं। नियमों को नहीं जानने वाले लोग यही कह बैठते हैं-“यह सब अन्धविश्वास है। हम समय में बंधते नहीं, अपनी इच्छा हुई, जब कोई काम कर लिया, इसमें समय क्या करेगा?" । परन्तु ऐसा कहने वाले लोग अनेक कार्यों में विघ्न, संकट, उपद्रव, विलम्ब आदि होने पर महसूस करते हैं कि कालनिर्दिष्ट नियमों को अन्धविश्वास कहकर ठकराने से हमें बहुत हानि हुई है। नियमों को जानने वाले और तदनुसार चलने वाले सब प्रकार से १. (क) जैनधर्म : अर्हत् और अर्हताएँ से भावांश ग्रहण, पृ. २३१ (ख) चन्द्रनाड़ी-प्रवाहेण सौम्यकार्याणि कारयेत्। सूर्यनाड़ी-प्रवाहेण रौद्र कर्माणि कारयेत्। सुषुम्नायाः प्रवाहेण भुक्ति-मुक्ति-फलानि च॥ -स्वरोदय शास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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