SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आध्यात्मिक क्षेत्र में - २ कर्म - विज्ञान की उपयोगिता कर्मविज्ञान की उपयोगिता पर सर्वतोभावेन विचार करना आवश्यक किसी भी वस्तु की उपयोगिता संसार में तभी मानी जाती है, जब उस वस्तु के बिना काम न चलता हो, अथवा उससे कोई विशेष लाभ होता हो, या वह वस्तु जीवन में पद-पद पर उपयोगी हो । कर्म मानव-जीवन ही नहीं, सांसारिक प्राणियों के जीवन के अथ से इति तक श्वासोच्छ्वास की तरह साथ-साथ संलग्न रहता है । श्वासोच्छ्वास तो एक जीवन के अन्त तक साथ रहता है, अर्थात् - आयुष्य की समाप्ति तक साथ चलता है; किन्तु कर्म तो सांसारिक जीवन-यात्रा में जन्म-जन्मान्तर तक कार्मण शरीर के माध्यम से साथ-साथ चलता है। संसार - यात्रा की सदा के लिए परिसमाप्ति और मोक्ष प्राप्ति के प्रारम्भ तक कर्म प्राणिजीवन के साथ-साथ गति प्रगति करता है। इस दृष्टि से कर्मविज्ञान की उपयोगिता पर सर्वतोभावेन विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। Jain Education International जीवन के सर्वांगों और सर्वक्षेत्रों का विश्लेषण कर्मविज्ञान में है। दूसरी बात यह है कि कर्मविज्ञान में मात्र शुभाशुभ क्रिया या प्रवृत्ति की दृष्टि से ही कर्म का विचार किया जाता, तब तो उसकी उपयोगिता पर दीर्घदृष्टि से किसी प्रकार का विचार करना अभीष्ट नहीं था । किन्तु जैन कर्मविज्ञान में कर्म से सम्बन्धित प्रत्येक प्रश्न पर दीर्घदृष्टि से, समस्त गुणस्थानों की अपेक्षा से, कर्मों की प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बन्ध की अपेक्षा से, गति, इन्द्रिय, काय, योग, उपयोग, लेश्या, संज्ञा, भव्य, आहार आदि विविध मार्गणाद्वारों की दृष्टि से तथा कर्म के कर्तृत्व, फलभोक्तृत्व, फलप्रदातृत्व तथा कर्मों के आनव-संवर, बन्ध, निर्जरा और मोक्ष आदि तत्त्वों की दृष्टि से एवं कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम तथा बन्ध, उदयं, उदीरणा, सत्ता आदि सभी पहलुओं से सर्वांगपूर्ण विचार किया गया है, इसलिए प्रत्येक विचारक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy