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कर्म-महावृक्ष के सामान्य और विशेष फल ? ३७३
उत्तर ५४. गौतम! मेरे बराबर तपस्या कौन कर सकता है ? मेरे लिये तो तपस्या करना बांये हाथ का खेल है। मेरे लिये सात-आठ दिन की तपस्या तो उपवास की तरह है, इत्यादि रूप से तप का मद (अहंकार) करने से उक्त पापकर्म के फलस्वरूप उस व्यक्ति की तपःशक्ति कुण्ठित एवं अवरुद्ध हो जाती है। ___प्रश्न ५५. भगवन्! कई व्यक्ति दिन-रात परिश्रम करते हैं, शास्त्रों, सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अभ्यास करते हैं, फिर भी उन्हें (श्रुत) ज्ञान प्राप्त नहीं होता, यह किस पापकर्म का फल है ? ___ उत्तर ५५. गौतम! जिसने पूर्वजन्म में बहुत-सा ज्ञान अर्जित करने के पश्चात् उसका अहंकाररूप पापकर्म किया हो, उसको प्रयत्न करने पर भी ज्ञान प्राप्त नहीं होता, विस्मृत हो जाता है।
निष्कर्ष यह है कि नपुंसकता, दुर्भाग्य, पशु-पक्षी-योनि की प्राप्ति इत्यादि अब्रह्मचर्य (कुशील) रूप पापकर्म के फल हैं तथैव असन्तोष, अविश्वास एवं महारम्भ आदि मूर्छारूप परिग्रह के कुफल हैं। पंगु, कोढ़ी, लूला, लंगड़ा, दूँटा आदि अपंग अवस्था निरपराध त्रस जीवों की जान-बूझकर हिंसा करने का कुफल हैं। ये सब विविध पापकर्मो के विशेष फल बताए गए हैं।
विविध पुण्यकर्मों के विशेष फल । अब विविध पुण्यकर्मों के विशेष फल की ओर देखिये। गौतम पृच्छा में कुछ प्रश्नोत्तर इस सम्बन्ध में भी अंकित हैं
प्रश्न १. भगवन्! किस शुभकर्म के उदय से मनुष्य को मनचाही भोगोपभोग सामग्री अनायास ही मिलती है और वह निश्चिंत, निर्द्वन्द्व होकर सुखानुभव करता है ?
उत्तर १. गौतम! प्राणि मात्र पर दयाभाव रखने-रखाने से तथा निःस्वार्थभाव से परोपकार के कार्य करने से मनुष्य के मनोवांछित सुख-शान्ति के मनोरथ सफल होते हैं।
प्रश्न २. भगवन्! किस पुण्यकर्म के फलस्वरूप मनुष्य को निर्मल तन-मन एथं बुद्धि तथा सुन्दर रूप, लावण्य और चतुरता आदि की प्राप्ति होती है, वह अपने कुल में प्रतिष्ठा और शोभा पाता है, सर्वत्र लोग उसका आदर करते हैं ?
उत्तर २. गौतम! जिसने जिनाज्ञापूर्वक विधि सहित नवबाड़ युक्त ब्रह्मचर्य का तन-मन-वचन से पालन किया है, बाह्य आभ्यन्तर तपस्या की हो, वह निर्मल, निरामय तन, मन आदि पाकर सुख-शान्ति का अनुभव करता है।
प्रश्न ३. भगवन्! किस पुण्यकर्म के प्रभाव से मनुष्य धन सम्पन्न होकर सुख-शान्ति का अनुभव करता है?
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