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________________ ३७२ . कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) उत्तर ४८. गौतम! जुआ खेलने से, मांसाहार, मद्यपान, परस्त्रीगमन, वेश्यागम करने, शिकार (निर्दोष पशुओं का वध) एवं चोरी करने से घोर तामसाच्छन्न नरक में उत्पन्न होकर वहाँ के भयंकर दुःख भोगता है। प्रश्न ४९. भगवन्! किसी-किसी मनुष्य के द्वारा सत्य कहे जाने पर भी कोई उसके वचनों पर विश्वास नहीं करता, न ही कोई उसके वचनों को सत्य समझता है। यह किस पापकर्म का फल है? उत्तर ४९. गौतम! जिस मनुष्य ने झूठी साक्षी दी हो, उस पाप के फलस्वरूप न तो उसके वचनों पर कोई विश्वास करता है, और न ही उसके वचनों को कोई सत्य समझता प्रश्न ५0. भगवन्! दुःखमय दीर्घजीवन (लम्बा आयुष्य) किस दुर्भाग्यरूप .पापकर्म के फलस्वरूप मिलता है? उत्तर ५0. गौतम! चलते-फिरते त्रस जीवों की हिंसा करने से, मिथ्या (असत्य) भाषण करने से और साधु-साध्वियों को (द्वेषवश) असाताकारी आहार-पानी देने से मनुष्य को दुःखमय दीर्घजीवन मिलता है। प्रश्न ५१. प्रभो! हीन कुल में जन्म किस पापकर्म के फलस्वरूप होता है ? उत्तर ५१ गीतम! पूर्वजन्म में कुल का मद (अहंकार) करने से हीन कुल में मनुष्य का जन्म होता है। प्रश्न ५२. भगवन्! नीच जाति में जन्म किस पाप के फलस्वरूप होता है ? उत्तर ५२. गौतम! पूर्वजन्म में जाति मद (जाति का अहंकार) करने से नीत जाति में जन्म होता है, जहाँ प्रायः उत्तम संस्कार, उत्तम शिक्षा-दीक्षा, धर्म-संस्कार आ नहीं मिलते। प्रश्न ५३. भगवन्! किसी मनुष्य को बहुत परिश्रम करने पर भी एक पैसे आय नहीं होती, इसके पीछे कौन-सा पापकर्म कारण है ? उत्तर ५३. गौतम! धन की प्रचुर आय (आमदनी) देखकर जिसने पूर्वजन्म घमंड किया हो, उसे इस जन्म में मेहनत करने पर भी विशेष अर्थ की प्राप्ति नहीं होती प्रश्न ५४. भगवन्! किसी-किसी मनुष्य को उपवासादि तप, त्याग-प्रत्याख्या करने में बहुत ही कष्ट होता है जिससे वह व्रत, उपवास आदि तप, त्याग बिलकुल ना कर सकता, यह किस पापकर्म का फल है ? १. (क) वही (भाषान्तर) (ख) वही (हिन्दी पद्यानुवाद) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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