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________________ ३७४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) उत्तर ३. गौतम! जो सुपात्र ( उत्कृष्ट पात्र साधु-साध्वी), पात्र ( सम्यग्दृष्टि श्रावक) और अनुकम्पापात्र (अल्पपात्र) को निर्दोष साताकारी आहार- पानी श्रद्धापूर्वक देता है, अनाथों, दीनों, अपाहिजों तथा दुखियों एवं अनाश्रितों को भी समय-समय पर यथोचित दान देकर अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करता है, वह भविष्य में नीति-न्यायपूर्ण आजीविका से धन सम्पन्न होकर सुख-शान्ति का अनुभव करता है।' प्रश्न ४. भगवन्! स्वर्ग और परम्परा से अपवर्ग (मोक्ष) की प्राप्ति किस उपाय से होती है ? उत्तर ४. गौतम ! जो मनुष्य सम्यग्दर्शनपूर्वक प्रशस्तरागसहित तप-संयम की आराधना करता है, वह देवलोक प्राप्त करता है। इसके विपरीत जो वीतरागतापूर्वक तप-संयम की आराधना करता है, वह समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करता है प्रश्न ५. भगवन्! सुखमय दीर्घजीवन किस पुण्य के फलस्वरूप प्राप्त होता है? उत्तर ५. गौतम! त्रस जीवों की रक्षा करने, सत्य बोलने से, साधु-साध्वियों को निर्दोष साताकारी आहार-पानी देने से मनुष्य को सुख-शान्तिमय दीर्घजीवन प्राप्त होता है। १. प्रश्न ६. भगवन्! कई लोगों के मन में भय नाम की कोई वस्तु नहीं होती । प्रभो! ऐसा किस पुण्यकर्म के फलस्वरूप होता है ? उत्तर ६. गौतम ! जिसने भयभीत जीवों को सान्त्वना, आश्वासन एवं आश्रय देकर निर्भय किया है, उन्हें अभयदान दिया है, वह मनुष्य उक्त पुण्यकर्म के फलस्वरूप निर्भयता की प्रतिमूर्ति हो जाता है। प्रश्न ७. भगवन्! किस पुण्यकर्म के फलस्वरूप मनुष्य बलवान् होता है ? उत्तर ७. गौतम! जिसने तपस्वी, रोगी, वृद्ध, अपंग आदि की जी-जान से सेवा (वैयावृत्य) की हो, वह मनुष्य उस पुण्य के फलस्वरूप बलवान् होता है। प्रश्न ८. भगवन्! किस पुण्यकर्म के फलस्वरूप किसी के वचनों में माधुर्य होता है, सभी उसके वचनों को सुनकर प्रसन्न होते हैं ? उत्तर ८. गौतम! अपने समग्र जीवन में जिसने सत्य भाषण ही किया हो, उस पुण्य के कारण उसका वचन सबको प्रिय एवं आनन्ददायक लगता है। प्रश्न ९. भगवन्! कोई मनुष्य सबको वल्लभ लगता है, वह किस पुण्यकर्म का फल है ? (क) वही ( भाषान्तर) (ख) वही पद्यानुवाद) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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