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________________ ३६८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) . . प्रश्न २४. भगवन्! मनुष्य को किस कारण से अत्यन्त दुबला-पतला और अशक्त शरीर मिलता है, जिसे देखकर वह अहर्निश झुरता रहता है, कोई भी महत्त्वपूर्ण, शक्तिशाली कार्य नहीं कर पाता? उत्तर २४. गौतम! जो मनुष्य सदैव अपनी शक्ति के अभिमान में चूर रहता है,जो जाति आदि का मद करके दूसरों पर अत्याचार करता है, उन्हें तिरस्कृत करता है, वह उस पापकर्म के फलस्वरूप अशक्त और दुर्बल शरीर पाता है, उसे शक्ति नहीं मिलती। प्रश्न २५. भगवन्! किन दुष्कर्मों के कारण मनुष्य जन्म से या बाद में नपुंसक, नामर्द और कायर बनता है? उत्तर २५. गौतम! जो लोग निर्दयतापूर्वक बैलों को खस्सी करने-करवाने का धंधा करता है अथवा जो बैल, घोड़े आदि के अण्डकोषों का शस्त्र, पत्थर आदि से छेदनभेदन करता है तथा स्वार्थान्ध होकर मर्दो को औषधि आदि से नामर्द बनाता है, कपट करने में चूर रहता है; वह उस पापकर्म के फलस्वरूप नामर्द, हिजड़ा, नपुंसक और कायर बनता है। प्रश्न २६. भगवन्! किसी नर या नारी के सिर पर झूठा कलंक या मिथ्या दोषारोपण किस पापकर्म के कारण आता है ? उत्तर २६. गौतम! जो दूसरे के सिर पर ईर्ष्या-द्वेषवश झूठा कलंक लगाता है, मिथ्या दोषारोपण करता है, भविष्य में उसके सिर पर वैसा ही झूठा कलंक लग जाता है। प्रश्न २७. भगवन्! किसी नर या नारी के शरीर में जलोदर का भयंकर उदर रोग किस पाप के कारण होता है? उत्तर २७. गौतम! जो पुरुष या स्त्री पंच महाव्रतधारी निर्ग्रन्थ मुनिवरों को द्वेष या ईर्ष्या से प्रेरित होकर नीरस, बासी, सड़ा हुआ या असाताकारी आहारादि देते हैं, उनके इस पापकर्म के उदय से जलोदर अथवा भयंकर उदर रोग उत्पन्न होता है। प्रश्न २८. भगवन्! मनुष्य काला, कलूट, अदर्शनीय, अशोभनीय एवं विवर्ण किस पाप के कारण होता है ? उत्तर २८. गौतम! जो मनुष्य कोतवाल या आरक्षक आदि किसी सत्ता या पद को पाकर निर्दोष लोगों पर झूठे (राज्यापराध के) इलजाम लगाकर उनके मार्मिक अंगों तथा हाथ, पैर, कान, नाक आदि अवयवों का छेदने-भेदन करता है, अथवा जो अपने सुन्दर रूप का अभिमान करता है; वह उस पापकर्म के फलस्वरूप भविष्य में काला, कुरूप और अशोभनीय होता है। १. (क) लघु गौतम पृच्छा (भाषान्तर) (ख) गौतम पृच्छा (पद्यानुवाद) से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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