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________________ कर्मफल : यहाँ या वहाँ, अभी या बाद में ? ३४१ गिरफ्तार करवाया। तुरन्त घोषणा करवाई कि युवराज का राज्याभिषेक करना है। नगर के मुख्य चौक में राज्याभिषेक की तैयारी की गई। सीसे और ताँबे का उबलता हुआ अत्यन्त गर्म रस स्वयं अपने हाथ से राजा ने नंदिवर्धन के सिर पर उड़ेल कर युवराज का राज्याभिषेक किया। इस प्रकार दुर्योधन के जीव नन्दिवर्धन को पूर्वजन्मकृत एवं इहजन्मकृत दुष्कर्मों का विपाक (फलभोग) प्राप्त हो गया। जैनकर्मविज्ञान में अनेकान्तदृष्टि से कर्मफलभोग का सिद्धान्त वस्तुतः अतीत कर्मों का फल हमारा वर्तमान जीवन है और वर्तमान कर्मों का फल हमारा भावी जीवन है। निष्कर्ष यह है कि कई कर्मों का फलभोग तुरंत मिल जाता है, कई कर्मों का फल इस जन्म में मिलता हैं, पर कुछ देर से, कई कर्मों का फलभोग आगामी जन्म या जन्मों में मिलता है। कई पूर्वजन्म या जन्मों में किये हुए कर्मों का फल आगामी एक या अनेक जन्मों में मिलता है। यह बात कर्म के उदय के अधीन है। जब भी कर्म उदय में आता है, तब उस-उस कर्म या कर्मों का फलभोग जीव को देर-सबेर से प्राप्त होता है। जैनकर्मविज्ञान इस विषय में विशद और स्पष्ट विश्लेषण करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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