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________________ ३३२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५). जैनकर्मविज्ञान में कर्म, कर्मफल और कर्मफलभोग में अन्तर जैनकर्मविज्ञान कर्म, कर्मफल और कर्मफल- भोग के विषय में अत्यन्त गहराई से अनेकान्तदृष्टि से चिन्तन प्रस्तुत करता है। पूर्वोक्त विवेचन के अनुसार किसी भी क्रिया, प्रवृत्ति या कर्म का मुख्य (अनन्तर) फल तो तत्काल मिलता है, कर्मबन्ध या कर्मानव के रूप में। किन्तु परम्परागत फल अथवा यों कहें कि कर्मफल का उपभोग इस जन्म में भी मिलता है, अगले जन्म या जन्मों में भी प्राप्त हो सकता है। इसी प्रकार कई कर्मों का फलभोग इसी जन्म में तत्काल भी प्राप्त हो सकता है । कतिपय कर्मों का कुछ अर्से बाद महीने, वर्ष या वर्षों बाद भी प्राप्त हो सकता है। इसी जन्म में कर्मफलभोग का शास्त्रीय प्रमाण उत्तराध्ययनसूत्र में हरिकेशबल के पूर्वजीवन और उत्तरकालीन जीवन की झांकी मिलती है। वे पूर्वजन्मकृत जातिमदरूप अशुभ कर्म के फलस्वरूप वर्तमान जीवन में चाण्डालकुल में जन्मे । चाण्डाल-परिवार में शुद्ध वातावरण, सत्संग, सम्यक्बोध और विकास के साधन तो मिलते ही कहाँ से ? किन्तु पूर्वजन्म में आचरित शुभकर्म के फलस्वरूप उन्हें स्वयं स्फुरणा हुई वक्रता छोड़ने और सरलता को अपनाने की, एक दुमुँही और एक सर्प के प्रति जनसामान्य के क्रमशः शुभ-अशुभ विचार एवं व्यवहार को देखकर। परन्तु अत्यधिक अपमान के दंश से पीड़ित हरिकेशबल घर से निकल पड़ा, किसी महाहितैषी मार्ग-दर्शक महात्मा की खोज में। महामुनि ने हरिकेशबल में शुद्ध कर्म (धर्माचरण) में उत्साह, साहस और पुरुषार्थ की प्रेरणा जगाई। फलतः उन्होंने महाव्रती श्रमण जीवन अंगीकार करके सम्यग्ज्ञान - दर्शन - चारित्र - तप की आराधना -साधना में पुरुषार्थ करके उसी जन्म में शुद्ध कर्म ( अबन्धक कर्म-धर्म) का उपार्जन किया और बाह्याभ्यन्तर तपश्चरण, समता, क्षमा, सन्तोष, तितिक्षा एवं दया आदि की उच्च साधना की। जिसके फलस्वरूप उसी जन्म में समस्त कर्मों का क्षय करके वे सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए।' इस जीवनवृत्त में पूर्वजन्म के कर्म का फलभोग इस जन्म में तथा इस जन्म में किये हुए (धर्माचरण रूप) शुद्ध कर्म (अबन्धक कर्म) का फलभोग इसी जन्म में प्राप्त होने का स्पष्ट उल्लेख है। कर्म का फल तो हरिकेशबल को अशुभ, शुभ या शुद्ध क्रिया या प्रवृत्ति करते ही तत्काल शुभाशुभ कर्मबन्ध के रूप में अथवा अबन्धक कर्म के रूप में मिल गया। तत्काल कर्मफलभोग का एक उदाहरण कुछ कर्मों का फलभोग तत्काल प्राप्त हो जाता है, इस सम्बन्ध में एक सच्ची घटना मैंने एक समाचार पत्र में पढ़ी थी। एक जैन और सिक्ख एक बस में साथ-साथ १. देखें, उत्तराध्ययनसूत्र अ. १२ में मुनि हरिकेशबल का जीवनवृत्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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