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कर्मफल : यहाँ या वहाँ, अभी या बाद में ? ३३१
कर्मगणित कर सकते। फिर वे स्वतः ही इस सिद्धान्त से सन्तुष्ट हो जाते कि मूलतः व्यक्ति हो या समूह, अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य के समस्त कृतकों के लिए स्वयं उत्तरदायी है। एक जन्म में जो असंगत लगता है, एक से अधिक जन्मों को देखने पर कर्मफल की संगति की अदृष्ट कड़ियाँ स्पष्ट प्रतीत होने लगती हैं।
भगवान् महावीर के तीर्थंकर बनने से पूर्व के २७ भवों (जन्मों) के तथा भगवान् पार्श्वनाथ के दस पूर्व जन्मों के कर्मों की परम्परा का लेखा-जोखा इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है।
जो लोग कर्म के मूलाधाररूप पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म को तथा अदृष्ट को, अथवा स्वर्ग, नरक आदि परोक्ष लोकों (गतियों) को नहीं मानते, वे ही कर्म फल के विषय में पूर्वोक्त असंगति बताकर जैनकर्म विज्ञान के इस अकाट्य सिद्धान्त की उपेक्षा कर बैठते हैं। तथा इस जन्म में प्राप्त कर्मफल को असंगत बताकर कर्मसिद्धान्त को ही मानने से इन्कार कर देते हैं। जैनकर्मविज्ञान पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को मानता है और वर्तमान में मिलने वाले कर्मफल भोग का अदृश्यमान मूल कारण पूर्वकृत शुभाशुभ कर्म को मानता
एकान्त तत्काल फलवादी : कर्मविज्ञान के रहस्य से अनभिज्ञ ... कुपथ्य करने वाला व्यक्ति तत्काल रोगी नहीं दिखाई देता। समय पाकर जब रोग उग्ररूप धारण कर लेता है, तभी निष्णात वैद्य या चिकित्सक उसका निदान करते हैं कि इस व्यक्ति ने अमुक कुपथ्य किया, इसके फलस्वरूप अमुक बीमारी हुई। ___इसी प्रकार कर्म सिद्धान्त भी यह एकान्त प्ररूपणा नहीं करता कि “पूर्वजन्मकृत कर्मों का ही फल मिलता है, वही सब कुछ है, अथवा इस जन्म में किये हुए शुभ-अशुभ कर्मों का इसी जन्म में शुभ या अशुभ फल, तत्काल या देर-सबेर से नहीं मिलता।" ऐसा आक्षेप करने वाले लोग जैन कर्म-विज्ञान के रहस्य से बिलकुल अनभिज्ञ हैं। - इसी प्रकार जैनकर्म विज्ञान यह भी नहीं कहता कि इस जन्म में किये हुए सभी . कर्मों के फल परलोक में मिलते हैं अथवा इस लोक में भी विलम्ब से मिलते हैं। कुछ कर्मों के फल तत्काल अथवा कुछ समय बाद मिलते हैं। कुछ कर्मों के फल इस जन्म में अमुक कालावधि के बाद मिलते हैं। कुछ कर्मों के फल अगले जन्म में या अनेक जन्मों के बाद भी मिलते हैं।
वृत्त
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१. (क) देखें, कल्पसूत्र (सं. उपाचार्य देवेन्द्रमुनि) में भ. महावीर एवं भ. पार्श्वनाथ के जीवन
वृत्त . (ख) भगवान महावीर : एक अनुशीलन -उपाचार्य देवेन्द्रमुनि (ग) भगवान् पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्ययन -उपाचार्य देवेन्द्रमुनि
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